Naresh Bhagoria
4 Dec 2025
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Manisha Dhanwani
4 Dec 2025
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4 Dec 2025
इंदौर- नगर निगम के ड्रेनेज विभाग में करीब डेढ़ सौ करोड़ का फर्जी बिल घोटाला होने के बाद निगम ने घोटालेबाजों से वसूली का ऐलान किया गया। लेकिन वसूली की कार्ययोजना अब तक नहीं बन सकी है। जब कि निगम ने घोटाले का पूरा मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया है। इससे निगम में घोटालेबाजों के हौसले बढ़ गए है।
नगर निगम में अफसरो की अफसरशाही हावी है। इसके चलते अफसर मनमानी कर मंसूबे पूरे करते है। ऐसे ही कतिपय निगम अफसरों और ठेकेदारो की मिलीभगत से निगम के ड्रेनेज विभाग में बिना काम किए करीब डेढ़ सौ करोड़ के फर्जी बिल लगाकर करीब सौ करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान हासिल कर लिया गया। बाद में तत्कालीन निगमायुक्त हर्षिका सिंह ने इस घोटाले को पकड़ा ओर विभागीय जांच कराई। जांच पूरी होने तक निगमायुक्त का तबादला हो गया और नए निगमायुक्त शिवम वर्मा ने इस मामले में जांच के आधार पर पुलिस में प्रकरण दर्ज कराया। इसके बाद निगम के ड्रेनेज विभाग में फर्जी बिल घोटाले की जांच शुरु हुई तो उसमें निगम इंजीनियर अभय राठौर, लेखा विभाग का राजकुमार सालवी, लिपिक मुरलीघर, कंमप्यूटर आपरेटर चेतन भदौरिया और उदय भदौरिया को जेल भेजा गया। इस मामले में घोटालेबाजों से मिलीभगत करने के आरोपो से घिरे आडिट विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर अनिल गर्ग, मुख्य आडीटर समर सिंह परमार और सहायक आडीटर को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इसके साथ ही फाईलो की जांच के लिए समिति भी गठित कर दी गई। इसके चलते करीब चार सौ से अधिक फाईलो की जांच हुई। इनकी जांच में घोटाले का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। इसके बाद निगम प्रबंधन ने घोटालेबाजो से वसूली का ऐलान करते हुए अफसरो को वसूली की कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए। लेकिन महीनो बाद भी निगम अफसर वसूली की कार्ययोजना नही बना सके। इससे अब निगम गलियारो में यह चर्चा होने लगी है कि निगम आखिर घोटाले की राशि वसूल कब करेगा।
तीन सदस्यीय जांच दल का गठन - समिति गायब -
नगर निगम ड्रेनेज विभाग के फर्जी बिल कांड की पुलिस जांच के साथ ही शासन द्वारा जांच कराए जाने को लेकर महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। इसके बाद तीन सदस्यीय जांच दल का गठन हुआ। जांच दल एक बार इंदौर आया और गायब हो गया। दोबारा अब तक जांच दल नहीं आया। इस तरह पुलिस और जांच दल की जांच प्रक्रिया पूरी तरह फाइलो में सिमटकर रह गई। इसके अलावा ईडी ने भी मामले की जांच शुरु कर बड़े दावे किए। लेकिन करोड़ो की संपत्ति जब्त करने के दावे करने वाली ईडी की टीम भी जांच बंद कर गायब हो गई। इस तरह मौजूदा में निगम के डेढ़ सौ करोड़ के फर्जी बिल कांड को लेकर कोई कार्रवाई नही हो रही है।
बताया जाता है कि नगर निगम के डेढ़ सौ करोड़ रुपए के फर्जी बिल कांड में कई घोटालेबाजों को जमानत मिल गई। जमानत मिलने की शुरुआत रेणु बढ़ेरा से हुई थी। लेकिन बाद में कई घोटालेबाज अदालत से जमानत हासिल कर बाहर आ गए। लेकिन निगम ने पूरे मामले को अनदेखा कर दिया। वहीं पुलिस महकमे ने भी मामले को तवज्जो देना बंद कर दिया। इससे अदालत में निगम का पक्ष भी कमजोर तरीके से रखा गया। जिसका लाभ निगम घोटालेबाजों को मिलने से वह जेल से बाहर आ गए।
नगर निगम से फर्जी बिल लगाकर भुगतान हासिल करने के मामले में निगम वसूली शुरु करने में लापरवाह बना हुआ है। इसके चलते ही निगम अफसर भी वसूली की कार्ययोजना बनाने में लापरवाही बरत रहे है। इससे निगम की साख को दाग लग रहा है। जब कि फर्जी बिल घोटाले में साक्ष्य मिलने के बाद भी निगम वसूली करने में कोताही बरत रहा है। इसके चलते ही निगम में घोटालेबाजों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। अब एक बार फिर नवागत निगमायुक्त दिलीप कुमार यादव ने कामकाज संभाला है। जिससे यह चर्चा शुरु हो गई है कि निगम घोटालेबाजों से वसूली की प्रक्रिया शुरु हो सकती है।