Aakash Waghmare
4 Dec 2025
Naresh Bhagoria
4 Dec 2025
Garima Vishwakarma
4 Dec 2025
Garima Vishwakarma
4 Dec 2025
Naresh Bhagoria
4 Dec 2025
Garima Vishwakarma
4 Dec 2025
नई दिल्ली। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की भारत यात्रा देश के लिए अपनी तकनीकी आत्मनिभर्रता को पूरा करने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती है। यह सही समय है, जब हमें तकनीकी साझीदारी पर बात करनी चाहिए। खासकर, उस वक्त में जब रूस हमें खुद पांचवी जनरेशन के सुखोई विमान तकनीकी साझेदारी के साथ देने का वादा कर चुका है। हमें याद रखना चाहिए कि रूस ही है, जिसने हमें क्रायोजेनिक इंजन दिए, ब्राह्मोस की तकनीक साझा की। देश में इस वक्त चौथी रेजीमेंट को एस-500 देने की बात हो रही है, ऐसे में हमें जरूरत है कि हम इनकी तकनीकी को भी साझा करें, इसका संयुक्त उत्पादन देश के भीतर ही शुरू करें। रक्षा क्षेत्र में यह बड़ा कदम साबित होगा। हमारी नई जरूरतें अब समुद्र के भीतर भी बढ़ रही हैं, हमें स्मॉल माड्यूलर रिएक्टर चाहिए, यह न्यूक्लियर सबमरीन को चलाने के लिए जरूरी हैं। यह तकनीक भी हमें रूस से मिल सकती है। हम ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को चीन की मदद से तकनीकी वॉर लड़ते हुए देख चुके हैं। ऐसे में हमारी पहली जिम्मेदारी है कि हम अपने आप को और बेहतर बनाएं और इसमें हमारे लिए सबसे भरोसेमंद साथी के तौर पर रूस हो सकता है।
जियो पॉलिटिकल माहौल में अमेरिका के राष्ट्रपति के पद पर डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद से बिखराव का माहौल है। हमारा अमेरिका पर भरोसा टूट रहा है, हमारी कंपनियों को भी अमेरीका में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में वक्त है कि हम रूस के खुले बाजार की ओर देखें। वहां पर हमारी कंपनियों के लिए कई तरह के विकल्प खुले हुए हैं। अमेरिका भी हमारी रूस से दूरियां नहीं चाहेगा, वह बेहतर तरीके से जानता है कि भारत ही अकेला ऐसा देश है जो ब्रिक्स और एससीओ को पश्चिम देशों का विरोधी नहीं बनने देगा। भारत के रहने से वहां पर एक संतुलन बना रहेगा।
रूस से दूरियां बनाकर भारत इन संगठनों में रणनीतिक लीडरशिप नहीं ले सकता है। हमें अब यूरेशियन लैंड एरिया में भी अपेक्स लीडरशिप का हिस्सा बनना होगा। स्पेस कार्यक्रमों के लिए भी हमें रूस की साझेदारी जरूरी है। विकास की इस गति में हमारी ऊर्जा की जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं, ऐसे में हमें रास्ते निकालकर रूस से ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए बातचीत को आगे बढ़ाना चाहिए। भारत के पास अभी डिजिटल ट्रांजेक्शन का विकल्प भी मौजूद है, यह भारतीय मुद्रा को भी ताकत देगा। ऐसे में अमेरिका के पीछे भागते रहने से बेहतर होगा कि हम रूस के रणनीतिक सहयोगी बनकर अपनी जरूरतों को पूरा करें और अमेरिका को भी एहसास कराते रहें कि हमारे हितों को प्रभावित करके वह हमें अपने साथ नहीं रख सकता है।