Aniruddh Singh
7 Nov 2025
Aniruddh Singh
7 Nov 2025
मुंबई। गुजरात के रण कच्छ की बंजर और नमकीन जमीन पर भारत के दो सबसे बड़े उद्योगपति–मुकेश अंबानी और गौतम अडाणी एक जबरदस्त मुकाबले में आमने-सामने हैं। यह मुकाबला सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि भारत के भविष्य के ऊर्जा मानचित्र को तय करने वाला है। दोनों समूह के बीच यहाँ मल्टी बिलियन डॉलर के नवीकरणीय ऊर्जा कारोबार पर कब्जा जमाने की होड़ शुरू हो गई हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने यहां 5.5 लाख एकड़ जमीन हासिल की है, जो तीन सिंगापुर जितने क्षेत्रफल के बराबर है।
वहीं अडाणी समूह की कंपनियों के पास 4.6 लाख एकड़ जमीन है। इन बंजर भूमि खंडों को अब उद्योग जगत ग्रीन गोल्डमाइन यानी हरित सोने की खदान कह रहा है। यह परियोजनाएं भारत को वैश्विक ऊर्जा मानचित्र पर नई पहचान दिला सकती हैं। रिलायंस इस क्षेत्र में 75,000 करोड़ रुपए का निवेश कर रही है। रिलायंस का फोकस सोलर पीवी मैन्युफैक्चरिंग, बैटरी सेल, इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण और ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन पर है। जबकि, अडाणी समूह भी सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, इलेक्ट्रोलाइजर और रिन्यूएबल पावर जनरेशन में बड़ी पूंजी लगा रहा है।
ये भी पढ़ें: ऑनलाइन ट्रेडिंग सिस्टम में तकनीकी गड़बड़ियों पर सेबी देगी नियमों में ढील, छोटे ब्रोकरों को मिलेगी राहत
अंबानी और अडाणी की ताकतें अलग-अलग क्षेत्रों में हैं। रिलायंस का पलड़ा मैन्युफैक्चरिंग, डाटा सेंटर और हाइड्रोजन में भारी है, जबकि अडाणी समूह बिजली बिक्री, थर्मल और ट्रांसमिशन में आगे है। ट्रांसमिशन कनेक्टिविटी में अडाणी समूह की मजबूत पकड़ है, जबकि रिलायंस सस्ती पूंजी जुटाने में बेहतर है। ग्रीन हाइड्रोजन और डाटा सेंटर को लेकर तस्वीर अभी अस्पष्ट है। हालांकि, रिलायंस इस क्षेत्र में पहले से बढ़त लिए हुए है क्योंकि वह भारत का सबसे बड़ा ग्रे हाइड्रोजन उपभोक्ता है। साथ ही गूगल और मेटा जैसी बड़ी तकनीकी कंपनियों के साथ रिलायंस की साझेदारी उसे डाटा सेंटर कारोबार में बढ़त देती है। अडाणी समूह पहले से थर्मल पावर और ट्रांसमिशन में स्थापित प्लेयर है। इसने मंदी के दौर में थर्मल परिसंपत्तियां खरीदी थीं और अब इसके पास बीएचईएल और एलएंडटी जैसे प्रमुख उपकरण आपूर्तिकर्ताओं की क्षमताएं पूरी तरह बुक हैं। इस कारण से ट्रांसमिशन और ग्रिड कनेक्टिविटी में इसका दबदबा ज्यादा है।
रिलायंस भले ही मैन्युफैक्चरिंग में बड़े स्तर पर निवेश कर रहा है, लेकिन इसे ग्रिड कनेक्टिविटी की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, खवड़ा क्षेत्र में 690 मेगावाट की परियोजना के लिए उसे 2027 तक कनेक्टिविटी की उम्मीद थी, लेकिन उसे केवल 2030 से अनुमति मिली है। इससे यह संकेत मिलता है कि रिलायंस को या तो ट्रांसमिशन लाइनों में निवेश करना होगा या फिर हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। रिलायंस गुजरात में 10 गीगावॉट का एकीकृत पोलिसिलिकॉन-टू-मॉड्यूल प्लांट बना रही है, जिसे आगे चलकर 20 गीगावॉट तक बढ़ाया जाएगा। यह हाई-एफिशिएंसी तकनीक पर आधारित होगा। इसके साथ ही कंपनी 2026 से 40 गीगावॉट-घंटा क्षमता की बैटरी गीगाफैक्टरी भी शुरू करेगी, जिससे यह ऊर्जा भंडारण में भारत की पहली बड़ी प्लेयर बन जाएगी।
ये भी पढ़ें: ऑनलाइन ट्रेडिंग सिस्टम में तकनीकी गड़बड़ियों पर सेबी देगी नियमों में ढील, छोटे ब्रोकरों को मिलेगी राहत
अडाणी ग्रीन एनर्जी खावड़ा में 50 गीगावॉट की योजना में से 30 गीगावॉट क्षमता का विकास कर रही है। यह इलाका लद्दाख के बाद भारत में सबसे अधिक सौर विकिरण वाला क्षेत्र है। अडाणी की नई ऊर्जा इकाई ने वित्त वर्ष 2025 में 4,800 करोड़ रुपये का EBITDA अर्जित किया, जो पिछले साल से दोगुना है। मुकेश अंबानी ने अपने एजीएम में कहा है नई ऊर्जा रिलायंस का इस दशक का सबसे महत्वाकांक्षी मिशन है। वहीं अडाणी भी इसे अपना सबसे बड़ा विकास क्षेत्र मानते हैं। असल सवाल यह है कि इस डेजर्ट डुएल में कौन बाजी मारेगा। लेकिन इतना तय है कि इस जंग का विजेता भारत की नवीकरणीय ऊर्जा यात्रा का नेतृत्व करेगा और भविष्य की ऊर्जा अर्थव्यवस्था का बादशाह कहलाएगा।