Aniruddh Singh
20 Dec 2025
मुंबई। ख्यात बॉलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन को आयकर विभाग के साथ चल रहे एक लंबे कर विवाद में बड़ी सफलता मिली है। यह मामला लगभग 4 करोड़ रुपए की उस राशि से जुड़ा था, जिसे विभाग ने उनकी आय से डिसअलाउ यानी अस्वीकार कर दिया था। दरअसल, ऐश्वर्या ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए करीब 39 करोड़ रुपए की आय घोषित की थी, जबकि उनकी टैक्स-फ्री आय (जैसे डिविडेंड या कुछ निवेशों से मिलने वाली करमुक्त आमदनी) से संबंधित कुल निवेश राशि लगभग 449 करोड़ रुपए थी। इतनी बड़ी टैक्स-फ्री इनकम और निवेश के कारण उनकी रिटर्न को आयकर विभाग ने विस्तृत जांच यानी कॉम्प्रिहेंसिव स्क्रूटनी के लिए चुना। जांच के दौरान आयकर अधिकारी (एसेसिंग आॅफिसर) ने ऐश्वर्या से उनके निवेश और खर्चों का पूरा ब्यौरा मांगा।
उन्होंने सभी दस्तावेज और स्पष्टीकरण प्रस्तुत किए। इसके बावजूद अधिकारी ने यह माना कि ऐश्वर्या ने टैक्स-फ्री आय कमाने में किए गए खर्चों को पूरी तरह सही तरीके से नहीं दिखाया है। इस आधार पर अधिकारी ने आयकर अधिनियम की धारा 14ए लागू की। धारा 14ए यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी करदाता टैक्स-फ्री आय कमाने पर किए गए खर्चों को टैक्सेबल आय में से घटा नहीं सकती। अधिकारी ने गणना करते हुए कहा ऐश्वर्या के निवेश का औसत मूल्य करीब 460 करोड़ रुपए था, इसलिए नियम 8डी के तहत 1% की दर से लगभग 4.6 करोड़ रुपए का खर्च डिसअलाउ किया जाना चाहिए। हालांकि, ऐश्वर्या ने पहले ही स्वयं 49 लाख रुपए का डिसअलाउंस अपनी रिटर्न में शामिल किया था, यानी उन्होंने मान लिया था कि इतनी राशि टैक्स-फ्री आय से जुड़ी खर्च के रूप में मानी जा सकती है।
इसके बावजूद अधिकारी ने शेष लगभग 4 करोड़ रुपए को अतिरिक्त रूप से डिसअलाउ कर उनकी कर योग्य आय को लगभग 43 करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया। इस निर्णय के खिलाफ ऐश्वर्या ने आईटीएटी (इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल) में अपील की। ट्रिब्यूनल ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि अधिकारी यह साबित नहीं कर पाए कि टैक्स-फ्री आय अर्जित करने के लिए वास्तव में कोई अतिरिक्त खर्च किया गया था। बिना ठोस सबूत के 4 करोड़ रुपए जोड़ना कानून के अनुरूप नहीं था। चूंकि ऐश्वर्या ने पहले ही 49 लाख रुपए का स्वैच्छिक डिसअलाउंस दिखाया था, इसलिए ट्रिब्यूनल ने अतिरिक्त राशि को हटाने का आदेश दिया। इस फैसले के बाद ऐश्वर्या राय बच्चन को लगभग 4 करोड़ रुपए की कर संबंधी राहत मिली है। यह निर्णय न केवल उनके लिए बड़ी राहत है, बल्कि उन करदाताओं के लिए भी मिसाल है जो टैक्स-फ्री आय से जुड़ी खर्च की गणना को लेकर विभागीय विवादों में फंसे रहते हैं।