Aniruddh Singh
30 Oct 2025
Aniruddh Singh
29 Oct 2025
वाशिंगटन डीसी। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने लगातार दूसरी बार ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की है, जिससे इसकी प्रमुख नीति दर अब 3.75% से 4% के बीच आ गई है। इसके साथ ही फेड ने 1 दिसंबर से अपनी बैलेंस शीट घटाने की प्रक्रिया (बैलेंस शीट रन-ऑफ) को भी समाप्त करने की घोषणा की है। इस निर्णय का उद्देश्य ठंडी पड़ती श्रम बाजार की स्थिति को संभालना है। हालांकि, फेड चेयर जेरोम पॉवेल ने संकेत दिया कि दिसंबर में दरों में और कटौती की कोई गारंटी नहीं है। उन्होंने कहा कि अगला कदम डेटा पर निर्भर करेगा और फेड जल्दबाजी में कोई नरम नीति अपनाने से बचेगा। फेड के इस निर्णय से पहले बाजारों ने लगभग 90% संभावना जताई थी कि दिसंबर में एक और दर कटौती होगी, लेकिन पॉवेल के सावधानी भरे बयान ने यह उम्मीदें ठंडी कर दीं।
पावेल ने कहा महंगाई दर अभी भी लक्ष्य से ऊपर है और श्रम बाज़ार में कमजोरी के संकेत हैं, इसलिए किसी भी अतिरिक्त कटौती का फैसला तभी लिया जाएगा जब आंकड़े स्पष्ट दिशा दिखाएंगे। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मौजूदा स्थिति धुंध में गाड़ी चलाने जैसी है, जहां आगे की दिशा का निर्णय सावधानीपूर्वक करना पड़ता है। विश्लेषकों का मानना है कि फेड अब डेटा-निर्भर नीति की ओर लौट रहा है, यानी वह केवल आर्थिक संकेतकों के आधार पर ही आगे के कदम उठाएगा। यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था फिलहाल न तो अत्यधिक कमजोर है और न ही इतनी मजबूत कि फेड को तुरंत दरों में और कटौती करनी पड़े। इससे यह संकेत मिलता है कि वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें अब कुछ समय तक स्थिर रह सकती हैं।
भारतीय बाजारों पर इसके प्रभाव की बात करें तो विशेषज्ञों का मानना है कि फेड का यह कदम भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को अपनी दिसंबर की मौद्रिक नीति में दरों में कटौती पर विचार करने का अवसर दे सकता है। अब तक आरबीआई डोविश पॉज यानी नरम लेकिन सतर्क रुख बनाए हुए है। यदि आरबीआआई फेड के संकेतों का अनुसरण करता है तो लंबी अवधि के सरकारी बॉन्ड आकर्षक बन सकते हैं, क्योंकि कम ब्याज दरों से सरकारी प्रतिभूतियों की यील्ड कम होने की संभावना रहती है। इससे बैंकिंग प्रणाली में पहले से की गई दर कटौतियों का प्रभाव भी बेहतर ढंग से प्रसारित हो सकेगा। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि फेड के बयान में कोई डोविश सरप्राइज नहीं था यानी नीति उतनी नरम नहीं थी जितनी बाजारों को उम्मीद थी।
इसके चलते अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड की यील्ड 4.05% तक बढ़ गई। भारत में बॉन्ड यील्ड्स में भी फिलहाल कोई बड़ी राहत नहीं दिखी है, जिससे संकेत मिलता है कि भारतीय बॉन्ड बाजार पर इस निर्णय का तत्काल सकारात्मक असर सीमित रहेगा। भारतीय शेयर बाजारों ने भी गुरुवार को वैश्विक कमजोरी का अनुसरण किया। सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 350 अंकों की गिरावट के साथ 84,634 पर और निफ्टी 0.47% गिरकर 25,931 पर आ गया। कुल मिलाकर, अमेरिकी फेड का रुख समर्थक लेकिन सतर्क कहा जा सकता है। यह बाजारों को स्थिरता देता है, लेकिन जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों (जैसे इक्विटीज) में नई तेजी के लिहाज से पर्याप्त नहीं है। अब निवेशकों की निगाहें श्रम बाजार और मुद्रास्फीति से जुड़े आगामी आंकड़ों पर टिकी हैं, जो आने वाले महीनों में वैश्विक और भारतीय दोनों बाजारों की दिशा तय करेंगे।