Priyanshi Soni
19 Oct 2025
Mithilesh Yadav
19 Oct 2025
Priyanshi Soni
19 Oct 2025
भारत सिंह तंवर-देपालपुर। इंदौर से 60 किलोमीटर दूर देपालपुर की टप्पा तहसील गौतमपुरा में 1 नवंबर को होने वाले हिंगोट युद्ध की तैयारियां जोरों से चल रही हैं। गौतमपुरा व रुणजी के सभी योद्धाओं ने इस हिंगोट (अग्निबाण) युद्ध की बरसों पुरानी ऐतिहासिक परंपरा का निर्वाह करने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। दीपावली के दूसरे दिन यानी धोक पड़वा पर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुके हिंगोट युद्ध का खतरनाक किंतु रोमांचक आयोजन होता है। यह शाम 5 बजे शुरू होकर 7 बजे समाप्त होता है। बरसों पुरानी हिंगोट युद्ध की यह पंरपरा आज भी जारी है। एक नवंबर को हिंगोट युद्ध का आयोजन होगा।
हिंगोट युद्ध के दिन तुर्रा व कलगी दल के योद्धा सिर पर साफा, कंधे पर हिंगोट से भरे झोले और हाथ में जलती लकड़ी लेकर दोपहर दो बजे के बाद हिंगोट युद्ध मैदान की ओर नाचते गाते निकल पड़ते हैं। मैदान के समीप भगवान देवनारायण मंदिर में दर्शन के बाद मैदान में आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। शाम 5 बजे बाद संकेत मिलते ही युद्ध शुरू कर देते हैं। करीब एक घंटे तक चलने वाले इस युद्ध में योद्धा एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट फेंकते हैं। कई बार हिंगोट की चपेट में आए योद्धा का झोला जलता है तो कई योद्धा घायल भी होते हैं। कई बार हिंगोट दिशाहीन होकर हजारों दर्शकों मे भी घुस जाता है, जिससे कई दर्शक भी चोटिल हो जाते हैं।
हिंगोट युद्ध के इतिहास की बात की जाए तो इतनी जानकारी ही मिलती कि यह गौतमपुरा व रुणजी नगरवासियों की बरसों पुरानी सांस्कृतिक परंपरा है। यहां के नागरिक इसे अपने पूर्वजों की धरोहर समझकर प्रतिवर्ष इस परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं। नगर के 88 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्ग का कहना है कि हमारे दादा ने हमें बताया था कि उनके दादा के समय से वे इस युद्ध का खेल देख रहे हैं।
दिल्ली में भी किया था प्रदर्शन : सन् 1984 में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित मालवा कला उत्सव में विशेष आमंत्रण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने तुर्रा व कलगी दल के योद्धाओं ने यह खेल खेला था। राजीव गांधी ने इसे काफी सराहा था। उस समय 16 योद्धाओं को नेता प्रकाश जैन के नेतृत्व में दिल्ली ले जाया गया था।