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Ahoi Ahtami 2025। अहोई अष्टमी का पर्व हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है, जिन्हें देवी पार्वती के रूप में संतान की रक्षिका माना गया है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर की रात 12 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर 14 अक्टूबर की सुबह 11 बजकर 9 मिनट तक रहेगी। अहोई माता की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 53 मिनट से 7 बजकर 8 मिनट तक रहेगा। तारों को देखने का समय शाम 6 बजकर 17 मिनट तक निर्धारित किया गया है। व्रती महिलाएं सुबह स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देती हैं और पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं। संध्या के समय अहोई माता की विधिवत पूजा की जाती है, जिसके बाद तारा दर्शन कर अर्घ्य देने के पश्चात व्रत का पारण किया जाता है।
अहोई अष्टमी से जुड़ी एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक स्त्री जंगल में मिट्टी खोदने गई थी, जहां उसने अनजाने में एक सेही (स्याहू) के बच्चे को नुकसान पहुंचा दिया। क्रोधित होकर सेही ने उसे श्राप दे दिया, जिससे उसके संतान की मृत्यु हो गई। इस घटना से दुखी होकर उस स्त्री ने अहोई माता की आराधना कर क्षमा याचना की। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने उसकी संतान को जीवनदान दिया। तभी से यह व्रत संतान की रक्षा और लंबी उम्र के लिए रखा जाने लगा।
अहोई अष्टमी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह मां के प्रेम, त्याग और समर्पण का भी प्रतीक माना जाता है। माताएं इस दिन निर्जल रहकर कठिन व्रत करती हैं और अपनी संतान की सफलता, उज्ज्वल भविष्य और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करती हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक भावना से जुड़ा है, बल्कि भारतीय संस्कृति में मां और संतान के रिश्ते को विशेष महत्व देने वाला पर्व भी है।
इस दिन की पूजा और व्रत के माध्यम से माताएं यह संकल्प लेती हैं कि वे संतान के लिए हर कठिनाई सहने को तैयार हैं। अहोई अष्टमी का पर्व माता के इस भावनात्मक जुड़ाव को श्रद्धा और भक्ति के रूप में दर्शाता है।
2025 में बन रहे विशेष योगों के साथ यह दिन और भी अधिक प्रभावशाली माना जा रहा है। धार्मिक रूप से आस्था रखने वालों के लिए यह दिन एक विशेष ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक है।