Aniruddh Singh
12 Oct 2025
मुंबई। भारतीय पूंजी बाजार नियामक सेबी शेयर बाजार में डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग से जुड़े नियमों में बड़ा बदलाव करने पर विचार कर रही है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) इंडेक्स ऑप्शंस में एक्पायरी के दिनों में अत्यधिक ट्रेडिंग पर लगाम लगाने के लिए इंट्राडे पोजीशन सीमा की समीक्षा पर विचार कर रहा है। फिलहाल, इंट्रा-डे पोजीशन्स पर कोई अलग सीमा तय नहीं है, बल्कि एक्सचेंजेस दिनभर की पोजीशन को उसी तरह मॉनिटर करते थे, जैसे इंडेक्स ऑप्सन्स में करते रहे हैं। मौजूदा नियमों के अनुसार, नेट डेल्टा आधार पर 1,500 करोड़ रुपए और ग्रॉस आधार पर 10,000 करोड़ रुपए की सीमा तय है। हालांकि, सेबी ने हाल ही में निफ्टी और सेंसेक्स जैसे बड़े इंडेक्स ऑप्शंस के एक्सपायरी डे के आंकड़े जांचे तो यह पाया कि एक्सपायरी के दिनों इंट्रा-डे ट्रेडिंग अक्सर तय सीमा से कई गुना ज्यादा हो जाती है। उदाहरण के तौर पर 7 अगस्त की निफ्टी एक्सपायरी पर टॉप नेट लॉन्ग पोजीशन 4,245 करोड़ और टॉप नेट शॉर्ट पोजीशन 5,409 करोड़ रुपए तक पहुंच गई।
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इसी तरह, ग्रॉस पोजीशन्स 10,192 करोड़ (लॉन्ग) और 11,777 करोड़ (शॉर्ट) तक चली गईं, जबकि तय सीमा सिर्फ 10,000 करोड़ थी। यही हाल 5 अगस्त को सेंसेक्स एक्सपायरी पर भी देखा गया, जब टॉप नेट लांग पोजीशन 2249 करोड़ रुपये थी जबकि टॉप नेट शार्ट पोजीशन 3055 करोड़ रुपये थी। टॉप ग्रास लांग पोजीशन 11,831 करोड़ रुपए थी जबकि टॉप ग्रॉस शार्ट पोजीशन 9,647 करोड़ रुपए थी। इस स्थिति को देखते हुए, सेबी अब इंट्रा-डे मॉनिटरिंग सीमा को बढ़ाकर 5,000 करोड़ रुपए करने पर विचार कर रहा है। हालांकि, ग्रॉस लिमिट को 10,000 करोड़ रुपए पर ही बनाए रखा जाएगा। इसका मतलब यह है कि ट्रेडर्स दिन के भीतर थोड़ी अधिक आज़ादी के साथ पोज़िशन बना पाएंगे, लेकिन एक्सपायरी डे पर असीमित सट्टेबाज़ी की अनुमति नहीं होगी। यह कदम सेबी की उस सोच को दिखाता है जिसमें वह बाजार की तरलता को बनाए रखते हुए अचानक बढ़ जाने वाले जोखिमों को सीमित करना चाहता है।
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दरअसल, सेबी ने फरवरी 2025 में कंसल्टेशन पेपर जारी किया था, जिसमें इंट्रा-डे लिमिट्स बढ़ाने का प्रस्ताव था। इस प्रस्ताव को तब वापस ले लिया गया था और निगरानी को और सख्त करने की दिशा में कदम बढ़ाए गए। अब हालात देखकर दोबारा लिमिट बढ़ाने का विचार किया जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि एक्सपायरी डे पर ली गई बड़ी पोजीशन्स एंड-ऑफ-डे डेटा में दिखाई नहीं देतीं, जिससे असली जोखिम का आकलन मुश्किल हो जाता है। इसलिए दिनभर की गतिविधियों पर अधिक सटीक नजर रखना जरूरी हो गया है। सेबी का मानना है कि एक्सपायरी डे पर होने वाली अत्यधिक खरीददारी को तर्कसंगत ढंग से नियंत्रित किया जाना चाहिए। कई बार बड़ी-बड़ी पोजीशन्स के चलते बाजार पर असर पड़ता है और बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है, जिससे छोटे निवेशकों को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही वजह है कि सेबी अतिरिक्त निगरानी और पेनल्टी लगाने की तैयारी कर रहा है, ताकि तय सीमा से ज्यादा पोजीशन लेने वाले ट्रेडर्स पर अंकुश लगाया जा सके।