Aakash Waghmare
15 Nov 2025
1999 का वो दौर जब सचिन तेंदुलकर इंग्लैंड में वन-डे वर्ल्ड कप में खेलने गए थे। लेकिन पापा के निधन की खबर सुनकर सचिन संतब्ध हो गए। जिसके बाद वह भारत लौट आएं। लेकिन वे वापिस जल्दी ही केन्या खेलने गए तो यहां उनका बल्ला खुब चला। उन्होंने केन्या के खिलाफ सैंचुरी मारी और इसे अपने पिता को समर्पित की।
क्रिकेट के मास्टर सचिन तेंदुलकर ने 16 नवंबर 2013 को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास लिया था। मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में सचिन ने हजारों फैंस के सामने अपनी फेयरवेल स्पीच दी। इस स्पीच से निकले शब्द, भावनाएं और गूंज मानों हर किसी को भावुक कर गई। विदाई स्पीच के दौरान सचिन की फैमिली और साथी क्रिकेटर्स मौजूद थे।
स्पीच की शुरुआत से पहले वानखेड़े स्टेडियम में सचिन...सचिन..सचिन...सचिन की गूंज मानों उनके करियर के महान योगदान को याद दिला रही है। उन्होंने कहा पिछले 24 साल में मेरी जिंदगी 22 गज में सिमटी रही। इस भावक पलों में उन्होंने कहा कि वे हर उस इंसान के नाम लिखकर लाएं हैं। ताकि किसी को भूल ना जाऊ।
पिता : अपने पिता रमेश तेंदुलकर का जिक्र करते हुए सचिन ने कहा कि उनके निर्देशन के बिना वो यहां पर खड़े नहीं होते। 11 साल की आयु में उनके पिता ने कहा कि अपने सपने का पीछा करो। जब भी मैंने कुछ खास किया या बल्ला हवा मे उठाया ये उन्हीं के लिए था।
मां : सचिन की मां का उनके करियर में अहम योगदान रहा है। उन्होंने कहा मैरे जैसे शरारती बच्चें को संभालना आसान नहीं था। उन्हें हर वक्त मेरे जैसे शरारती बच्च की फिक्र रहती। मैंने जिस दिन से बल्ला थामा और क्रिकेट शुरू किया उन्होंने हर दिन मेरे लिए प्रार्थना की।
कोच : मेरा क्रिकेटिंग करियर 11 साल की उम्र में शुरू हुआ। लेकिन करियर का टर्निंग पॉइंट तब था जब मेरा भाई मुझे आचरेकर सर के पास ले गया था। और मुझे खुशी है कि मेरे लास्ट मैच में उनका स्टैंड्स में मौजूद रहता देख मुझे काफी अच्छा लगा। आचरेकर सर ने मुझे अपने स्कूटर से मुंबई के एक मैदान से लेकर दूसरे मैदान तक कई बार लेकर गए। जिससे मेरा ज्यादा से ज्यादा अभ्यास हो सके। सचिन ने आगे कहा कि उनके कोच ने पिछले 29 सालों में कभी उन्हें...'वेल प्लेड' नहीं कहा। इसका कारण बताते हुए कहा कि सर को डर था कि ज्यादा तारीफ सुनकर मैं कहीं क्रिकेट की प्रैक्टिस बंद न कर दू। लेकिन अपनी फेयरवेल स्पीच में सचिन ने कोच को कहा कि सर अब आप मुझे वेल प्लेड कह सकते हैं यह मेरा आखिरी मैच है।
अंकल-आंटी को किया याद: जब सचिन स्कूल में थे तो उनका घर स्टेडियम से काफी दूर था। जिस कारण उन्हें अपने अंकल-आंटी के पास रहने पड़ा। सचिन यहां चार सालों तक रहे। उन्होंने बताया कि आंटी ने मेरी लिए बहुत मेहनत की और हर रोज सुबह मेरे लिए खाना बनाती थी। उनकी पूरी परवरिश एक बेटे के समान थी। इस मौके पर मैं उनका शुक्रिया कहे बिना नहीं रह सकता।