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मुंबई। दिग्गज आईटी कंपनी इन्फोसिस ने हाल ही में अपने इतिहास का सबसे बड़ा शेयर बायबैक यानी शेयर पुनर्खरीद कार्यक्रम घोषित किया है, जिसकी कुल राशि 18,000 करोड़ रुपए तय की गई है। इस बायबैक में कंपनी के संस्थापक और प्रमोटर समूह ने भाग न लेने का निर्णय लिया है। इसका मतलब है कि वे अपने शेयर कंपनी को बेचने की बजाय अपने पास ही रखेंगे। कंपनी ने यह जानकारी अमेरिकी बाजार नियामक संस्था सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) को भेजे गए एक पत्र में दी, जिसकी प्रति भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में भी दाखिल की गई है। इस पत्र में बायबैक की प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी दी गई है, हालांकि अभी तक बायबैक के लिए रिकॉर्ड डेट तय नहीं की गई है। नियमों के अनुसार, जब कोई कंपनी टेंडर ऑफर के माध्यम से बायबैक करती है, तो प्रमोटर समूह के पास इसमें भाग लेने या न लेने का विकल्प होता है।
इन्फोसिस के प्रमोटर समूह ने इस बार इसमें शामिल न होने का फैसला लिया है। इसका संकेत यह देता है कि संस्थापक और उनके परिवार को कंपनी के भविष्य पर भरोसा है और वे अपनी हिस्सेदारी को कम नहीं करना चाहते। सितंबर 2025 में इन्फोसिस के बोर्ड ने निर्णय लिया था कि कंपनी अपने शेयरधारकों से बाजार मूल्य के मुकाबले थोड़े अधिक दाम पर शेयर खरीदेगी। इसका उद्देश्य कंपनी के अतिरिक्त नकदी का उपयोग करना, निवेशकों को रिटर्न देना और शेयर मूल्य को स्थिर बनाए रखना है। यह बायबैक पिछले तीन सालों में पहला और अब तक का सबसे बड़ा है। कंपनी के कुछ प्रमुख प्रमोटरों में सुधा गोपालकृष्णन (2.30%), नंदन निलेकणी (0.98%), सुधा मूर्ति (0.83%), रोहन मूर्ति (1.46%), अक्षता मूर्ति (0.94%), और नारायण मूर्ति (0.36%) शामिल हैं। इन सभी ने इस बायबैक में हिस्सा न लेने का फैसला किया है।
यह कदम निवेशकों के लिए एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि जब कंपनी के प्रमोटर अपने शेयर बेचने से परहेज करते हैं तो आमतौर पर इसका अर्थ यह होता है कि उन्हें कंपनी की वृद्धि और भविष्य की संभावनाओं पर भरोसा है। इससे बाजार में कंपनी के शेयरों की स्थिरता और निवेशकों का विश्वास भी बढ़ता है। इन्फोसिस की यह बायबैक योजना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कंपनी के पास पर्याप्त नकदी भंडार है और वह अपने शेयरधारकों को लाभ देने के लिए सक्रिय नीति अपना रही है। ऐसे कदमों से न केवल निवेशकों को लाभ होता है बल्कि कंपनी की छवि एक जिम्मेदार और पारदर्शी कॉर्पोरेट इकाई के रूप में भी मजबूत होती है। कुल मिलाकर, इन्फोसिस के प्रमोटरों का बायबैक से दूर रहना यह दर्शाता है कि वे कंपनी के दीर्घकालिक भविष्य पर भरोसा रखते हैं और अपने स्वामित्व को बरकरार रखना चाहते हैं।