Aakash Waghmare
9 Dec 2025
तियानजिन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात साल बाद चीन पहुंचे हैं। वे यहां 31 अगस्त से 1 सितंबर तक होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब भारत और चीन के रिश्तों में पिछले कुछ महीनों में नरमी आई है। सीमा विवाद पर प्रगति, व्यापार में सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ने से दोनों देशों के बीच बातचीत का नया अध्याय शुरू हुआ है।
मोदी इससे पहले अप्रैल 2018 में चीन गए थे। इसके बाद जून 2020 में गलवान घाटी की झड़प ने रिश्तों को गहरी खाई में धकेल दिया। लेकिन अब कई अहम फैसलों जैसे देपसांग-डेमचोक से सैनिकों की वापसी, सीधी फ्लाइट सर्विस की बहाली और कैलाश मानसरोवर यात्रा की अनुमति ने दोनों देशों के बीच संवाद की राह फिर खोली है।
31 अगस्त को मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दोपहर 12 बजे (चीनी समयानुसार) तिआनजिन में द्विपक्षीय बैठक होगी। 40 मिनट तय इस मुलाकात को बेहद अहम माना जा रहा है। यह दस महीनों में दोनों नेताओं की दूसरी भेंट है। इससे पहले वे अक्टूबर 2024 में रूस के कजान शहर में BRICS सम्मेलन के दौरान मिले थे।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी तीन डिप्टी पीएम और 12 मंत्रियों के साथ तिआनजिन पहुंचे हैं। वे समिट में हिस्सा लेने के बाद बीजिंग में 3 सितंबर को सैन्य परेड में भी शामिल होंगे। सोमवार को उनकी और मोदी की दोपहर 12:15 बजे द्विपक्षीय बैठक प्रस्तावित है।
SCO हमेशा चीन के प्रभाव में रहा है। अमेरिका को लगता है कि यह मंच भारत, रूस, ईरान और सेंट्रल एशिया के सहयोग से वैकल्पिक ताकत बन सकता है। साथ ही, दुनिया के आधे से ज्यादा रेयर अर्थ रिजर्व चीन के पास हैं, जो अमेरिका की तकनीकी और रक्षा उद्योग के लिए जरूरी हैं।
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