People's Reporter
11 Nov 2025
Aniruddh Singh
9 Nov 2025
Aniruddh Singh
9 Nov 2025
Aniruddh Singh
9 Nov 2025
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच पिछले कुछ सालों से जारी तनावपूर्ण संबंधों में अब नरमी के संकेत दिखाई दे रहे हैं। इसी क्रम में भारत सरकार ने चीनी ट्रेड प्रोफेशनल्स के लिए वीजा प्रतिबंधों को ढीला करने पर विचार कर रही है। इसका मतलब यह है कि चीन की बड़ी कंपनियों जैसे वीवो, ओप्पो, शाओमी, बीवाईडी, हाइसेंस और हायर के शीर्ष अधिकारी अब लगभग 5 साल बाद भारत आ सकेंगे। यह कदम दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने और निवेश माहौल को बेहतर बनाने के लिहाज से अहम माना जा रहा है।
केंद्र सरकार ने संकेत दिया है कि गैर-तकनीकी भूमिकाओं के लिए चीनी अधिकारियों को वीजा मंजूरी दी जाएगी। इसमें सीईओ, कंट्री हेड, जनरल मैनेजर, सेल्स, मार्केटिंग, फाइनेंस और एचआर जैसी भूमिकाएं शामिल हैं। अब तक भारत सिर्फ उन्हीं चीनी पेशेवरों को वीजा देता था जो तकनीकी भूमिकाओं में कार्यरत थे और इनमें भी विशेष रूप से वे कंपनियां जो प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना का हिस्सा थीं। साल 2020 में सीमा संघर्ष के बाद भारत ने वीजा पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे और चीनी निवेशों के लिए अनिवार्य बहु-मंत्रालयीय मंजूरी की शर्त भी लागू कर दी थी।
अब स्थिति बदलती दिख रही है। भारत और चीन ने हाल ही में सीधे हवाई उड़ानों को फिर से शुरू करने, पर्यटकों को अनुमति देने और सीमा विवाद को सुलझाने के लिए संवाद बढ़ाने पर सहमति जताई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में सात साल बाद पहली बार चीन यात्रा करेंगे और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे। इसे दोनों देशों के रिश्तों में एक नया मोड़ माना जा रहा है। चीनी कंपनियों के लिए यह राहत बहुत अहम है। कई कंपनियों के कंट्री हेड और शीर्ष अधिकारी बीते कुछ सालों से चीन से ही रिमोट तरीके से भारत के ऑपरेशंस संभाल रहे थे।
इससे न केवल व्यापारिक निर्णयों में देरी होती थी बल्कि भारतीय कंपनियों के साथ तकनीकी साझेदारी और निवेश योजनाएं भी प्रभावित होती थीं। उदाहरण के लिए, कैरियर मीडिया जैसी कंपनियां तीन साल से अपने चीनी डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर (एमडी) के लिए वीजा पाने में असफल रही हैं। इसी तरह, बीवाईडी इंडिया को अपने बोर्ड के लिए दो चीनी निदेशकों को भारत लाने की अनुमति नहीं मिल पाई, जिससे कंपनी भारतीय कानूनों का पालन नहीं कर सकी।
वीजा प्रतिबंधों ने कई चीनी कंपनियों को मजबूर किया कि वे अपने बोर्ड में भारतीय पेशेवरों को शामिल करें। वहीं भारतीय कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों जैसे डिक्सन टेक्नोलॉजीज, पीजी इलेक्ट्रोप्लास्ट और एंबर एंटरप्राइजेज के अधिकारियों को बार-बार चीन जाना पड़ा, ताकि वे साझेदारी और तकनीकी समझौते कर सकें। उद्योग जगत का मानना है कि यदि चीनी अधिकारी भारत आकर खुद फैक्ट्रियों और सुविधाओं का निरीक्षण करेंगे तो निवेश और सहयोग और भी तेजी से बढ़ेगा। भारत के लिए चीन सबसे बड़ा स्रोत बाजार है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल कंपोनेंट्स में। अनुमान है कि इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में इस्तेमाल होने वाले 50 से 65 प्रतिशत हिस्से चीन से आते हैं।
ऐसे में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध सामान्य होना भारतीय उद्योगों के लिहाज से भी बहुत जरूरी है। भारत का यह कदम न केवल द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने का प्रतीक है, बल्कि इससे भारतीय कंपनियों को भी फायदा होगा जो चीनी तकनीक और कंपोनेंट्स पर निर्भर हैं। यह फैसला आने वाले महीनों में भारत-चीन व्यापार और निवेश को एक नई दिशा दे सकता है, बशर्ते यह सहयोग संवेदनशील क्षेत्रों से दूर रहते हुए संतुलित ढंग से आगे बढ़े।