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पितृपक्ष में कई विशेष तिथियां होती हैं, जिनमें से एक है पंचमी तिथि जिसे कुंवारा पंचमी भी कहा जाता है। इस दिन उन मृत परिजनों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु अविवाहित अवस्था में हुई हो। इस दिन अविवाहित ब्राह्मण को बुलाकर भोजन कराना चाहिए और दान-दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
इस बार पंचांग के अनुसार पंचमी और षष्ठी का संयोग 12 सितंबर शुक्रवार को बन रहा है। इस दिन पूरे दिन भरणी नक्षत्र रहेगा। इस नक्षत्र में किए जाने वाले श्राद्ध को महाभरणी श्राद्ध कहा जाता है। इसका फल गया-पुष्कर के समान माना गया है।
पंचमी तिथि की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। जिस स्थान पर श्राद्ध करना है, उसे गाय के गोबर से लीपकर और गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें। घर के आंगन में रंगोली बनाएं, इससे पितर प्रसन्न होते हैं। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। भोजन में खीर अवश्य शामिल करें। अविवाहित ब्राह्मण को बुलाकर विधि-विधान से श्राद्ध करें। श्राद्ध के समय पितरों का स्मरण करें। गाय, कुत्ता, कौआ और अतिथि के लिए भोजन से चार भाग अलग निकालें।
इस विधि से श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। योग्य संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। पितरों का आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है।