Naresh Bhagoria
21 Dec 2025
Naresh Bhagoria
21 Dec 2025
Naresh Bhagoria
21 Dec 2025
Manisha Dhanwani
21 Dec 2025
भोपाल। गहन मौन में सृजनात्मकता का जन्म होता है। जो व्यक्ति बहुत अधिक व्यस्त, चिंतित, अत्यधिक महत्वाकांक्षी या आलसी होता है, उससे कोई नया सृजन प्रकट नहीं हो सकता। एक अशांत व्यक्ति आविष्कारक नहीं बन सकता। आप कह सकते हैं कि यह बात विपरीत लगती है, क्योंकि कुछ वैज्ञानिक, जिन्होंने महान खोजें कीं, ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने के लिए अत्यंत अधीर थे। उदाहरण के लिए, आर्किमिडीज बहुत बेचैन हो गए थे, जब उन्होंने उत्प्लावन (तैरने) के सिद्धांत की खोज की। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? उन्होंने यह खोज बेचैनी में नहीं की। उन्होंने इसे तब पाया, जब वे स्नानागार में विश्राम कर रहे थे।
न्यूटन ने जीवन भर संघर्ष किया, लेकिन जब वे निराशा से घिर गए, जब उनका मस्तिष्क सोचते-सोचते और गणनाएं करते-करते थक गया, तब वे एक सेब के पेड़ के नीचे बैठकर विश्राम करने लगे। उसी विश्राम के क्षण में एक सेब उनके सामने गिरा और वे इसके प्रति जिज्ञासु हो गए। यही जिज्ञासा गुरुत्वाकर्षण की खोज का कारण बनी। यदि आप इस धरती पर हुए हर आविष्कार को सूक्ष्मता से देखें, तो पाएंगे कि वे तब घटित हुए, जब लोग बेचैनी, हताशा और निराशा से ऊपर उठ गए। यह तब हुआ, जब वे टूटन के एक बिंदु पर पहुंचे और फिर शिथिल हो गए। उस पूर्ण विश्रांति के क्षण में उनकी सृजनात्मकता खिल उठी।
तनाव तब उत्पन्न होता है, जब कम समय में बहुत कुछ करना हो और ऊर्जा का अभाव हो। कभी-कभी थोड़ा-सा तनाव आपको अधिक करने के लिए प्रेरित कर सकता है। लेकिन मैं तनाव या दबाव को लोगों के लिए अधिक करने या कुछ भी रचनात्मक करने का मुख्य प्रेरक तत्व नहीं मानता। सामान्यत: लोग कहते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। मुझे लगता है कि यह विचार कुछ पुराना हो चुका है। ध्यान के कुछ मिनट, भीतर की ओर जाना, यह बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकता है। यदि आप ध्यान की कला जानते हैं, तो आप सृजन के स्रोत को छू सकते हैं, और केवल सृजन ही नहीं, बल्कि आनंद और हर प्रकार की ऊर्जा के स्रोत को भी स्पर्श कर सकते हैं।
जब कभी आप भ्रमित हों, तो बस शिथिल हो जाएं। अंतर्ज्ञान विश्रांति में काम करता है। नवाचार और सृजनात्मकता हमारे भीतर से ही फूटते हैं, और आध्यात्मिकता, आत्मस्वरूप का अध्ययन, उस स्रोत को छूने की विधि है। जितना अधिक हम अपने भीतर विश्राम करते हैं, उतने ही अधिक सृजनशील और आनंदित हो सकते हैं।
मन और शरीर विपरीत नियमों पर काम करते हैं। शारीरिक स्तर पर हम जितना अधिक प्रयास करते हैं, उतना बेहतर परिणाम मिलता है। जबकि मानसिक स्तर या रचनात्मकता के स्तर पर, प्रयास जितना कम होगा, उतना ही अधिक परिणाम हम पा सकते हैं। जब मन हर प्रयास छोड़ना और शिथिल होना सीख लेता है, तब विचार स्वत: उभरने लगते हैं। यदि आप कोई बात भूल गए हों, तो उसे याद करने के लिए जितना अधिक जोर लगाते हैं, उतनी ही देर लगती है। रचनात्मक होने के लिए केवल मन की तीक्ष्णता, देखने-समझने की बेहतर क्षमता चाहिए।