Manisha Dhanwani
1 Nov 2025
भोपाल। मध्य प्रदेश अब 70 साल का हो गया है। 1 नवंबर 1956 को इसका गठन हुआ था। पहले इसकी कोई स्थायी राजधानी नही थी और इंदौर और ग्वालियर 6-6 महीने की राजधानी हुआ करते थे। बाद में भोपाल को इसकी केंद्र में होने और सभी हिस्सों से आसानी से पहुंचने की वजह से स्थायी राजधानी बनाया गया। धीरे-धीरे भोपाल ने आधुनिक शहर का रूप ले लिया और अब यह सिर्फ प्रशासनिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी मध्य प्रदेश का मुख्य केंद्र बन चुका है।
मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस हर साल 1 नवंबर को मनाया जाता है। इस साल, यानी 2025 में, मध्य प्रदेश अपना 70वां स्थापना दिवस मना रहा है। इस अवसर पर “अभ्युदय मध्य प्रदेश” थीम के साथ कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। मुख्य समारोह 1 से 3 नवंबर तक भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में होंगे।

मध्य प्रदेश, जिसे भारत का हृदय कहा जाता है, अपनी स्थापना की कहानी के लिए भी बहुत दिलचस्प है। जब नया मध्य प्रदेश बनाया जा रहा था, तो राजधानी बनने के लिए कई शहरों ने दावा किया। लेकिन आखिरकार भोपाल को राजधानी बनाया गया। मध्य प्रदेश को भारत का हृदय कहा जाता है। इसकी राजधानी भोपाल बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। साल 1956 में भारत में कई नए राज्यों का गठन हुआ। उस समय मध्य प्रदेश भी नए राज्यों में शामिल था।
1950 से 1956 तक मध्य भारत की दो राजधानियां थी- ग्वालियर (सर्दियों में) और इंदौर (गर्मियों में)। इसके अलावा विंध्य प्रदेश की राजधानी रीवा थी और भोपाल राज्य की राजधानी भोपाल थी। इन छोटे राज्यों को मिलाकर नया मध्य प्रदेश बनाया गया। राज्य बनने के समय भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर- इन चार शहरों ने राजधानी बनने का दावा किया। पहले ग्वालियर और इंदौर 6-6 महीने के लिए मध्य भारत की राजधानी हुआ करते थे। लेकिन आखिरकार भोपाल को मध्य प्रदेश की स्थायी राजधानी बनाया गया।
इतिहासकार चिन्मय मिश्र बताते हैं कि 1 नवंबर 1956 से पहले, 1950 में मध्य भारत बनाया गया था, जो ब्रिटिश शासन की देन थी। उस समय यशवंत राव होलकर द्वितीय और जीवाजी राव सिंधिया के बीच सहमति के कारण इंदौर और ग्वालियर 6-6 महीने के लिए मध्य भारत की राजधानी बने रहते थे। बाद में जब नए राज्यों का गठन शुरू हुआ, तो मध्य भारत के इलाकों के साथ विंध्य प्रदेश और भोपाल रियासत को मध्य प्रदेश में शामिल किया गया। पूर्व में मध्य भारत की राजधानी ग्वालियर और इंदौर 6-6 महीने के लिए रहती थी। लेकिन 1956 में राज्य के पुनर्गठन के बाद, भोपाल रियासत को मध्य प्रदेश में जोड़ने के साथ-साथ छत्तीसगढ़, विंध्य और ग्वालियर अंचल से भोपाल की समान दूरी होने के कारण इसे भौगोलिक लाभ मिला। भोपाल को राजधानी बनाने से पहले इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर पर भी विचार किया गया। बदली हुई परिस्थितियों में भोपाल को राजधानी बनाए जाने पर जबलपुर और इंदौर को हाईकोर्ट और ग्वालियर को समान वितरण के सिद्धांत के अनुसार राजस्व मंडल का मुख्यालय बनाया गया।
राजधानी के लिए पहले ग्वालियर का नाम रखा गया था, बाद में जबलपुर और इंदौर पर भी विचार हुआ। लेकिन भोपाल में कर्मचारियों के रहने के लिए पर्याप्त भवन थे। साथ ही, भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह भारत से संबंध नहीं रखना चाहते थे और हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर भारत का विरोध कर रहे थे। इसलिए देश के हृदय स्थल भोपाल रियासत के विरोध को रोकने के लिए, सरदार वल्लभभाई पटेल की मध्यस्थता से भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया।
भोपाल मध्य भारत के बीच में स्थित होने के कारण मध्य प्रदेश की राजधानी बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब 1956 में मध्य प्रदेश का गठन हुआ, तब विंध्य क्षेत्र, छत्तीसगढ़ और ग्वालियर अंचल जैसे अलग-अलग हिस्सों को जोड़ना था। भोपाल इन सभी क्षेत्रों के बीच में होने की वजह से सभी के लिए आसानी से पहुँचने योग्य केंद्र माना गया। इसके अलावा, भोपाल पहले से ही रेलवे से अच्छी तरह जुड़ा हुआ था, जिससे दिल्ली और छत्तीसगढ़ जैसी जगहों से सीधे संपर्क संभव था और प्रशासन व परिवहन के लिए यह सुविधाजनक था। अन्य शहरों की तुलना में भोपाल में प्रशासनिक और रहने की सुविधाएं बेहतर थीं, जिससे इसे नई राजधानी बनाने में आसानी हुई। साथ ही, भोपाल रियासत की राजधानी होने के कारण यहाँ प्रशासनिक और शाही परंपराओं की झलक भी थी, जो राजधानी बनने में मददगार रही। इस तरह, भोपाल की अच्छी भौगोलिक स्थिति, रेलवे से जुड़ाव, बेहतर प्रशासनिक सुविधाएं और ऐतिहासिक महत्व। इन सभी कारणों से इसे मध्य प्रदेश की राजधानी बनाया गया।

डॉ. मोहन यादव ने बताया कि मध्यप्रदेश आज अपने 70वें स्थापना वर्ष में प्रवेश कर रहा है। 1 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आए इस प्रदेश ने पिछले दो दशकों में विकास की नई यात्रा शुरू की है और देश में अग्रणी राज्य बनने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। यह दिन देवउठनी ग्यारस के पावन अवसर पर राज्योत्सव के साथ भी जुड़ा है। हमारे तीज-त्योहार और परंपराएं हमारी संस्कृति की पहचान हैं और उत्सवों के माध्यम से भविष्य निर्माण की भावना मजबूत होती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश प्राकृतिक संसाधनों, संस्कृति, कला, उत्सव और परंपराओं में समृद्ध राज्य है। मां नर्मदा, चंबल, पार्वती, शिप्रा जैसी नदियों का सान्निध्य और बाबा महाकाल का आशीर्वाद प्रदेशवासियों को प्राप्त है। यह भूमि भगवान परशुराम, श्रीकृष्ण और आदि शंकराचार्य जैसे महापुरुषों से जुड़ी हुई है। सम्राट विक्रमादित्य की जन्मभूमि भी यही रही है और उज्जैन से ही विक्रम संवत् की पहली वैज्ञानिक कालगणना शुरू हुई थी। विकास के क्षेत्र में मध्यप्रदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और प्रेरणा से तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रदेश में उद्योग और रोज़गार को राज्योत्सव की थीम के रूप में रखा गया है। रीजनल इन्वेस्टर्स समिट और निवेश यात्राओं के माध्यम से प्रदेश ने निवेश और औद्योगिक विकास को नई दिशा दी है। इनोवेशन हब, स्टार्टअप नीति और फंडिंग सपोर्ट जैसी पहलों से युवाओं और उद्यमियों को मजबूत बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने बताया कि पिछले एक वर्ष में प्रदेश ने औद्योगिक निवेश, आईटी, इलेक्ट्रॉनिक निर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। कृषि, दुग्ध उत्पादन, पर्यावरण और सामाजिक सशक्तिकरण में भी अनेक ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के GYAN मंत्र के अनुरूप गरीब, युवा, किसान और नारी कल्याण के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। कौशल विकास मिशन और स्टार्टअप नीति ने युवाओं को नौकरी देने से लेकर नौकरी बनाने तक प्रेरित किया है। कृषि में ड्रोन निरीक्षण, स्मार्ट सिंचाई और केन-बेतवा जैसी परियोजनाओं से किसानों को बड़ी मदद मिल रही है। महिला सशक्तिकरण के लिए नारी शक्ति मिशन और लाड़ली बहना योजना से महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता और अवसर मिल रहे हैं। गौ-संवर्धन और दुग्ध उत्पादन को भी आर्थिक विकास से जोड़ा गया है।
मुख्यमंत्री ने अंत में कहा कि प्रदेश की स्वर्णिम यात्रा सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के साथ आगे बढ़ रही है। गरीब के चेहरे पर मुस्कान, किसान की खुशहाली, नारी का सम्मान और युवाओं का उज्ज्वल भविष्य हमारा संकल्प है। आइए हम सब मिलकर समग्र विकास और आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के निर्माण में योगदान दें। प्रदेशवासियों को 70वें स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।