Manisha Dhanwani
1 Nov 2025
नई दिल्ली। शानिवार यानी आज भारत के राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की रचना की 150वीं वर्षगांठ पूरे हो गए है। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने कहा, ‘वंदे मातरम’ ने पूरे राष्ट्र में चेतना, सम्मान और एकता की भावना जगाई है।
आगे दत्तात्रेय होसबले ने गीत के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को याद करते हुए कहा यह गीत केवल शब्दों का संगम नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा और देशभक्ति का मंत्र बन गया है। उन्होंने आगे कहा, 1875 में रचित यह गीत, जब 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन में गाया, तब से यह भारत के हर नागरिक के दिल की आवाज बन गया।
महासचिव ने आगे कहा, इस गीत का प्रभाव इतना गहरा था कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनेक महान हस्तियों ने इसे अपनाया। महर्षि अरविंद, मैडम भीकाजी कामा, महाकवि सुब्रमण्यम भारती, लाला हरदयाल, और लाला लाजपत राय जैसे विद्वानों और नेताओं ने अपने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के शीर्षक में ‘वंदे मातरम’ को शामिल किया। महात्मा गांधी भी अपने पत्रों का समापन ‘वंदे मातरम’ लिखकर करते थे, जो उस समय देशवासियों के बीच राष्ट्रभक्ति और एकता का प्रतीक बन गया।
आगे उन्होंने कहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर, राष्ट्रगीत "वंदे मातरम" के रचयिता श्रद्धेय बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को सम्मानपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता है। यह महान रचना न केवल मातृभूमि की पूजा करती है, बल्कि पूरे राष्ट्र में जागरूकता और प्रेरणा का संचार करती है। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने काव्य में देशभक्ति की अद्वितीय भावना को व्यक्त किया। इसके अलावा, 1896 के कांग्रेस राष्ट्रीय अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने "वंदे मातरम" को गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। यह रचना 1875 में लिखी गई थी, और तब से यह देशभक्ति का प्रतीक बन चुकी है, जो आज भी भारतीय समाज के हृदय में गूंजती है।
होसबले ने कहा "वंदे मातरम" एक ऐसा अद्वितीय मंत्र है, जो न केवल मातृभूमि की पूजा करता है, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र में जागरूकता और प्रेरणा का संचार भी करता है। यह गीत भारतीय संस्कृति और धरोहर का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। 1905 के बंगाल विभाजन आंदोलन से लेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तक, "वंदे मातरम" हर स्वतंत्रता सेनानी का नारा बन गया था। यह गीत न केवल एक आम धुन था, बल्कि एक शक्तिशाली उद्घोषणा थी, जो सभी भारतीयों को एकजुट करने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष की प्रेरणा देने का कार्य करती थी।
'वंदे मातरम' सिर्फ एक गीत नहीं है, यह भारत की आत्मा, उसके विचारों, उसकी संस्कृति और उसकी पहचान का प्रतीक है। इसकी गूंज आज भी भारतीयों के दिलों में जीवित है, क्योंकि यह देश की एकता, अखंडता और स्वतंत्रता का प्रतीक बन चुका है।