People's Reporter
11 Nov 2025
Aniruddh Singh
9 Nov 2025
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9 Nov 2025
मुंबई। अगस्त 2025 की शुरुआत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने भारतीय शेयर बाजार से बड़े पैमाने पर पूंजी निकासी की है। उन्होंने अगस्त में अब तक लगभग 20,975 करोड़ रुपए के शेयर बेचे हैं, जो पिछले महीने जुलाई की तुलना में अधिक है। इसका मुख्य कारण अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 25% आयात शुल्क हैं। 7 अगस्त से लागू हुए इन शुल्कों के साथ ही 27 अगस्त से अतिरिक्त 25% पेनल्टी टैरिफ भी प्रभावी होने वाला है। इस निर्णय से भारतीय निर्यात और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई है, जिसका सीधा असर निवेशकों की धारणा पर पड़ा है। हालांकि इस बिकवाली के बीच कुछ सकारात्मक संकेत भी दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी एसएंपी ने भारत की रेटिंग को बीबीबी माइनस से बढ़ाकर बीबीबी कर दिया है, जो वैश्विक स्तर पर भारत की आर्थिक स्थिति और नीतिगत स्थिरता पर बढ़े भरोसे का संकेत है। इस कदम से विदेशी निवेशकों का विश्वास दोबारा बढ़ने की संभावना है, क्योंकि क्रेडिट रेटिंग में सुधार का अर्थ है कि देश की अर्थव्यवस्था अधिक मज़बूत और जोखिम कम मानी जा रही है।
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इसके अतिरिक्त, भारत सरकार जल्द ही जीएसटी सुधार 2.0 की दिशा में बड़ा कदम उठाने वाली है। प्रस्तावित बदलावों के अनुसार मौजूदा चार दरों की जगह सिर्फ दो मुख्य दरें 5% और 18% रखने की योजना है। इस बदलाव से न केवल वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में 4-5% की कमी आएगी, बल्कि उपभोक्ताओं के बजट को भी राहत मिलेगी। सितंबर से शुरू होने वाले त्योहारी सीजन उपभोग में बढ़ोतरी का समय होता है। यदि करों में कटौती से वस्तुएं सस्ती होती हैं तो घरेलू खपत तेजी से बढ़ सकती है, जिसका लाभ कंपनियों और शेयर बाजार को मिलेगा।
यही कारण है कि विशेषज्ञ मानते हैं कि फिलहाल एफपीआई बिकवाली कर रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में वे भारतीय इक्विटी बाजार में दोबारा निवेश करने पर विचार कर सकते हैं। विशेष रूप से तब जब अमेरिका और भारत के बीच व्यापार वार्ता से शुल्क का बोझ कम या खत्म हो जाएगा। गौरतलब है कि 2025 में अब तक एफपीआई लगभग 1.2 लाख करोड़ की बिकवाली कर चुके हैं, जबकि 2024 के पहले आठ महीनों में उन्होंने 42,879 करोड़ का शुद्ध निवेश किया था। यह अंतर दिखाता है कि बदलते वैश्विक हालात और नीतिगत जोखिम निवेशकों के मूड पर सीधा असर डालते हैं।
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दिलचस्प बात यह भी है कि जहां विदेशी निवेशक लगातार शेयर बेच रहे हैं, वहीं घरेलू म्यूचुअल फंड्स ने इस स्थिति में मजबूत भूमिका निभाई है। उन्होंने शेयरों की खरीद बढ़ाकर बाजार पर बिकवाली के दबाव को बहुत हद तक संतुलित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। अगर यह सपोर्ट नहीं होता तो बाजार में और बड़ी गिरावट देखने को मिलती। यह दिखाता है कि भारतीय निवेशक अपने देश की विकास कहानी और दीर्घकालिक संभावनाओं को लेकर आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। कुल मिलाकर, मौजूदा स्थिति में भले ही विदेशी निवेशक सतर्क दिखाई दे रहे हों, लेकिन क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड, जीएसटी सुधार और संभावित व्यापार समझौते जैसे कारक भविष्य में माहौल को सकारात्मक बना सकते हैं। अगर घरेलू खपत बढ़ती है और वैश्विक व्यापार दबाव कम होता है, तो विदेशी निवेशकों का दृष्टिकोण बदल सकता है और वे भारतीय बाजार में वापस बड़ी मात्रा में निवेश करना शुरू कर सकते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यह बिकवाली का अस्थाई दौर है और लंबी अवधि में भारत फिर से विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा।