Aniruddh Singh
26 Sep 2025
Aniruddh Singh
25 Sep 2025
Aniruddh Singh
25 Sep 2025
मुंबई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आयातित पेटेंटेड और ब्रांडेड दवाइयों पर 100% शुल्क लगाने की घोषणा की है। उनकी इस घोषणा का असर भारतीय शेयर बाजार में साफ दिखाई दिया। शुक्रवार, 26 सितंबर को शेयर बाजार में फार्मा सेक्टर के शेयरों में तेज गिरावट देखने को मिली। टैरिफ की नई दर ने निवेशकों में घबराहट पैदा कर दी, क्योंकि भारतीय दवा कंपनियों के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। इस फैसले से उनकी लागत और मुनाफे पर दबाव बढ़ने की आशंका पैदा हो गया है। कारोबार के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान सन फार्मा को हुआ, जिसका शेयर 5% गिरकर ₹1,547 के स्तर पर पहुंच गया। यह इसका 52 सप्ताह का निचला स्तर है। इसके अलावा बायोकॉन 3.3% टूटकर ₹344 पर आ गया, जबकि जाइडस लाइफसाइंसेस में 2.8% फीसदी की गिरावट के साथ ₹990 पर आ गया।
ऑरबिंदो फार्मा 2.4% गिरकर ₹1,070 और डॉ. रेड्डीज लैबोरेट्रीज 2.3% गिरकर ₹1,245.30 पर आ गए। इसके साथ ही ल्यूपिन और सिप्ला में 2% की गिरावट देखने को मिली। टॉरेंट फार्मा अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुआ और इसमें 1.5% की गिरावट देखने को मिली, जो इसे ₹3,480.65 तक लेकर आई। सुबह 9:30 बजे तक निफ्टी फार्मा इंडेक्स 2.54% तक गिर चुका था। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल* पर पोस्ट करते हुए कहा कि 1 अक्टूबर 2025 से किसी भी आयातित ब्रांडेड या पेटेंटेड दवा पर 100% शुल्क लगाया जाएगा। हालांकि, यह शुल्क उन कंपनियों पर लागू नहीं होगा जो अमेरिका में फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट का निर्माण कर रही हैं या निर्माण शुरू कर चुकी हैं। यानी, यदि किसी कंपनी ने अमेरिका में फैक्ट्री निर्माण के लिए जमीन पर काम शुरू कर दिया है तो उस पर यह टैक्स लागू नहीं होगा।
इस घोषणा का सबसे बड़ा असर उन भारतीय कंपनियों पर होगा जिनकी अमेरिकी बाजार में पैठ गहरी है। सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज़, सिप्ला, ल्यूपिन, ऑरबिंदो फार्मा और जाइडस लाइफसाइंसेस जैसी कंपनियां अमेरिका को बड़ी मात्रा में दवाइयां निर्यात करती हैं। इनमें ज्यादातर दवाइयां जेनेरिक और बायोसिमिलर श्रेणी की होती हैं, लेकिन ब्रांडेड दवाओं से भी बड़ा राजस्व आता है। अब 100% शुल्क लगने से इनकी दवाइयां अमेरिका में महंगी हो जाएंगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता घटेगी। निवेशकों को इस फैसले से यह डर है कि भारतीय कंपनियों की अमेरिका से होने वाली आय पर नकारात्मक असर पड़ेगा। दूसरी ओर, वे कंपनियां जो पहले से अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी हैं, उन्हें इसका फायदा मिल सकता है।