Manisha Dhanwani
18 Oct 2025
उज्जैन।
हर रात 12 बजे से चक्रतीर्थ श्मशान में जलती चिताओं के समीप साधना शुरू होती है, जो देर रात तक चलती है। दीपों की टिमटिमाहट, मदिरा की तीव्र गंध और मंत्रोच्चार के बीच साधक अपने-अपने उद्देश्य से साधनाओं में लीन हैं। यह साधना लगभग तीन घंटे तक चलती है।
स्थानीय तांत्रिक भय्यू महाराज बताते हैं कि वे भैरव मंदिर के पास चिता स्थल के पास साधना करते हैं। नींबू, मिर्च, मदिरा, मावा, फल, सिंदूर, अबीर, दीपक, फूल और कंडों का प्रयोग इसमें होता है। मान्यता है कि इन तंत्र क्रियाओं से लक्ष्मी प्रसन्न होकर साधक को धन, सुख और समृद्धि का वरदान देती हैं।
साधकों के बीच दिवाली की रात “कुबेर साधना” विशेष मानी जाती है, जो धन-प्राप्ति से जुड़ी है। वहीं कुछ साधक “उलूक साधना” करते हैं, जिसमें उल्लू को लक्ष्मी का वाहन मानकर प्रतीकात्मक पूजा की जाती है। अमावस्या की रात की गई यह साधना आर्थिक उन्नति का मार्ग खोलने वाली मानी जाती है।
पंडित महेश पुजारी के अनुसार उज्जैन केवल धार्मिक नगरी नहीं, बल्कि एक सिद्ध भूमि भी है। महाकाल मंदिर के दक्षिणमुखी स्वरूप के कारण यहां श्मशान साधनाएं विशेष रूप से प्रभावशाली मानी जाती हैं। दीपावली की अमावस्या की रात, जिसे ‘महानिशा’ कहा जाता है, तांत्रिकों के लिए अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती है।
इस दौरान “कछुए का पूजन” भी किया जाता है, जिसे भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। कछुआ स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक है। इसके अलावा कौड़ी साधना धन प्राप्ति के लिए, रत्ती साधना व्यापार में स्थिरता के लिए की जाती है। गणेश और गौरी-गणेश साधनाएं भी साधकों द्वारा की जाती हैं।
20 अक्टूबर को प्रदोष काल शाम 5:54 से रात 8:24 बजे तक रहेगा, जो महालक्ष्मी पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ समय माना गया है। इस दौरान लाल वस्त्र पर माता लक्ष्मी, काली और सरस्वती की मूर्तियां स्थापित कर गंगाजल, पंचामृत और सुगंधित द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है। श्रीसूक्त या कनकधारा स्तोत्र का पाठ कर दीप-धूप और नैवेद्य के साथ आरती की जाती है।
महानिशा यानी अमावस्या की वह रात जब चंद्रमा पूरी तरह लुप्त हो जाता है और संसार अंधकार में डूब जाता है। तांत्रिक परंपरा में यह रात ब्रह्मांडीय ऊर्जा के उच्चतम प्रभाव की मानी जाती है। साधकों के अनुसार इस समय की गई साधना कई गुना प्रभावशाली होती है।
इस रात उज्जैन सहित देश के विभिन्न हिस्सों से साधक एकत्र होकर तीन प्रकार की प्रमुख साधनाएं करते हैं - श्मशान साधना, सरी शिव साधना और शव साधना। इनका उद्देश्य केवल भौतिक लाभ नहीं, बल्कि आत्मा का परम स्रोत से जुड़ाव होता है।
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर दिवाली की रात अघोरी एक पैर पर खड़े होकर मां काली और औघड़ दानी शिव की आराधना करते हैं। नरमुंडों से बने खप्परों में चंदन और घी से आरती करते हैं। यह साधना जीवन और मृत्यु दोनों के प्रति समभाव की शिक्षा देती है।
तांत्रिकों और अघोरियों के लिए दिवाली की रात केवल दीपों का पर्व नहीं, आत्मा के अंधकार को मिटाने का अवसर है। यह साधना आत्मज्ञान, अहंकार के विसर्जन और 'स्व' को शिव में विलीन करने की प्रक्रिया है।
उनके लिए यही है दिवाली : जहां भीतर का दीप जले और आत्मा, परम सत्य की ओर बढ़े।