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जैसे-जैसे दीपावली का त्योहार करीब आता है, देश के हर कोने में रौनक दिखाई देने लगती है। बाजार जगमगाते हैं, घरों की साफ-सफाई शुरू हो जाती है और हर मन उत्साह से भर उठता है। दीपावली सिर्फ रोशनी का उत्सव नहीं, बल्कि परंपराओं और आस्थाओं का संगम है। इस पर्व की शुरुआत होती है धनतेरस से, जो हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन विशेष रूप से एक परंपरा निभाई जाती है, जिसे 'यम दीपदान' कहा जाता है। यह परंपरा रात के समय घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर निभाई जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह दीपक केवल प्रकाश का स्रोत नहीं, बल्कि मानव जीवन की रक्षा का प्रतीक भी है?
पौराणिक मान्यता के अनुसार, यमराज – जो मृत्यु के देवता माने जाते हैं – उन्हें प्रसन्न करने के लिए इस दिन को रात दीप जलाकर यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और परिवार के सदस्यों की आयु में वृद्धि होती है।
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, राजा हेम के पुत्र की मृत्यु का समय निकट था। माता ने दुखी होकर यमराज की आराधना की और दीपदान किया। उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर यमराज ने उनके पुत्र को जीवनदान दिया। यही कारण है कि आज भी इस परंपरा को श्रद्धा से निभाया जाता है।
इस वर्ष धनतेरस 18 अक्टूबर की शाम से शुरू होकर 19 अक्टूबर दोपहर 1:51 बजे तक रहेगा। इस अवधि में त्रयोदशी तिथि प्रभावी रहेगी और यही समय यम दीपक जलाने के लिए शुभ माना जाता है।
परंपरा के अनुसार, सूर्यास्त के बाद घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर एक दीपक जलाना चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा माना जाता है। इसमें सरसों के तेल का उपयोग किया जाता है, और एक रुई की बत्ती लगाई जाती है।
जहां धार्मिक दृष्टिकोण से यह परंपरा जीवन रक्षा का प्रतीक है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसका महत्व कम नहीं है। दीपक की लौ वातावरण को ऊर्जा देती है और सरसों के तेल की सुगंध आसपास के वातावरण को शुद्ध करती है। इससे वायुमंडल में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है और घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। यही कारण है कि दीपक जलाने के बाद घर का वातावरण अधिक शांत, सकारात्मक और सुखद अनुभव होता है।
धनतेरस और यम दीपदान का पर्व हमें केवल रिवाज निभाने का नहीं, बल्कि जीवन की रक्षा, घर की शुद्धता और आत्मा की शांति का संदेश देता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि परंपराएं केवल इतिहास नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में भी गहरी प्रासंगिकता रखती हैं। इस बार जब आप दीपावली की तैयारियों में व्यस्त हों, तो इस छोटी-सी लेकिन महत्वपूर्ण परंपरा को भी निभाएं। यम के लिए जलाया गया दीपक केवल एक लौ नहीं, बल्कि परिवार की सलामती की एक कामना है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।
धनतेरस के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गरीबों, जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन दान करके न केवल पुण्य कमाया जा सकता है, बल्कि समाज में एक सकारात्मक ऊर्जा भी फैलाई जा सकती है।