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टेक डेस्क। हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट की एक स्टडी ने दावा किया कि भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कई नौकरियों में इंसानों की मदद करेगा। इस रिपोर्ट में इतिहासकार को दूसरे नंबर पर रखा गया, जिससे सोशल मीडिया पर इतिहासकारों में हलचल मच गई। लोगों ने सोचना शुरू किया कि क्या अब इतिहासकारों का काम भी मशीनें कर लेंगी?
लेकिन, जब एक पत्रकार ने AI चैटबॉट्स को ऐतिहासिक तथ्यों की जांच में परखा, तो सच सामने आ गया, जिसके मुताबिक AI अभी इतिहासकारों की कुर्सी से काफी दूर है।
जिस विषय से AI की परीक्षा ली गई, वह कुछ अलग और दिलचस्प था। वह था, अमेरिकी राष्ट्रपतियों द्वारा कार्यकाल के दौरान देखी गई फिल्में। पत्रकार का यह शौक नया नहीं था। 2012 में उन्होंने रोनाल्ड रीगन के व्हाइट हाउस और कैंप डेविड में देखी गई फिल्मों की एक सूची पाई। उसी समय उन्होंने सोचा कि बराक ओबामा के फिल्म देखने का रिकॉर्ड भी निकाला जाए। लेकिन, अमेरिका के राष्ट्रपति रिकॉर्ड्स FOIA (Freedom of Information Act) के तहत तब तक सार्वजनिक नहीं होते जब तक राष्ट्रपति पद छोड़ने के 5 साल पूरे न हो जाएं।
इसके बावजूद उन्होंने रिसर्च जारी रखी और 1908 में टेडी रूजवेल्ट द्वारा देखी गई पहली बर्ड डॉक्यूमेंट्री से लेकर हाल के राष्ट्रपतियों तक का डेटा इकट्ठा किया।
पत्रकार ने तय किया कि AI से वही सवाल पूछे जाएंगे जिनके जवाब उन्हें पहले से पक्के तौर पर पता हैं। उन्होंने कुछ ऐसे सवाल रखे जो गूगल सर्च से तुरंत मिल सकते थे और कुछ ऐसे जो केवल गहरे शोध या दुर्लभ रिकॉर्ड से ही सामने आते हैं। इसका मकसद यह देखना था कि क्या AI केवल आसानी से उपलब्ध इंटरनेट जानकारी पर निर्भर है या वास्तव में कठिन ऐतिहासिक तथ्यों को भी सही ढंग से पेश कर सकता है।
सबसे पहले उन्होंने OpenAI के GPT-5 को आजमाया, जो अभी हाल ही में लॉन्च हुआ है। कंपनी ने अपने इस नए मॉडल को काफी प्रभावशाली बताया है। सवाल था कि किस राष्ट्रपति ने किस तारीख को कौन सी फिल्म देखी? उन्होंने वुडरो विल्सन, ड्वाइट आइजनहावर, रिचर्ड निक्सन, रोनाल्ड रीगन, जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश, बिल क्लिंटन और जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के कार्यकाल की कुछ खास तारीखें चुनीं।
हर बार GPT-5 ने यही कहा कि उसे उस तारीख के बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। यह बात अच्छी रही कि इस बार AI ने कोई मनगढ़ंत जवाब नहीं दिया, लेकिन यह भी साबित हुआ कि बुनियादी जानकारी देने में इसकी सीमाएं हैं।
GPT-5 के लॉन्च के समय OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने दावा किया था कि यह किसी भी विषय में पीएचडी-स्तरीय विशेषज्ञ की तरह काम करेगा। लेकिन, पुराने मॉडल चुनने का विकल्प हटा देने से कई पुराने यूजर्स नाराज हो गए। ऑल्टमैन को आलोचना झेलनी पड़ी और बाद में उन्होंने 4o मॉडल सब्सक्राइबर्स के लिए उपलब्ध करा दिया। फिर भी, पत्रकार के मुताबिक GPT-5 अब भी कठिन सवालों में निराश करता है, खासकर तब जब आपके पास पेड प्लान न हो।
कुछ लोग मानते हैं कि कंपनियों के सीईओ सिर्फ बदनामी से बचने के लिए इंसानों की नौकरियां तुरंत AI से नहीं बदल रहे। लेकिन असलियत यह है कि AI अभी भी इतनी गलतियां करता है कि ह्यूमन मॉनिटरिंग जरूरी है।
पत्रकार के मुताबिक, बड़े पैमाने पर बदलाव तभी होंगे जब AI बिना लगातार मानवीय निगरानी के भरोसेमंद तरीके से सही जवाब देने लगेगा और अभी वह दिन काफी दूर है।
पत्रकार ने माइक्रोसॉफ्ट Copilot को भी टेस्ट किया। इसमें दो मोड हैं Quick Response (GPT-4o) और Deep Research (जिसमें 10 मिनट तक रिसर्च होती है)। जब पूछा गया कि 11 अगस्त 1954 को राष्ट्रपति आइजनहावर ने कौन सी फिल्म देखी, तो Quick Response ने गलत जवाब दिया, The Unconquered, जो कि हेलेन केलर पर बनी डॉक्यूमेंट्री है।
Deep Research मोड ने भी लंबा-चौड़ा, लेकिन गलत जवाब दिया। उसने कहा कि आइजनहावर ने Suddenly फिल्म देखी होगी। समस्या यह थी कि यह फिल्म 7 अक्टूबर 1954 को रिलीज हुई थी, यानी सवाल की तारीख से दो महीने बाद।
पत्रकार के पास 1950 के दशक का व्हाइट हाउस प्रोजेक्शनिस्ट का असली लॉगबुक था, जिसमें दर्ज था कि 11 अगस्त 1954 को आइजनहावर ने ‘River of No Return’ देखी थी, जिसमें मर्लिन मुनरो और रॉबर्ट मिचम थे। AI ने यह नहीं बताया, क्योंकि यह डेटा इंटरनेट पर व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है, यही वह जगह है जहां मानव इतिहासकार की अहमियत साबित होती है।
गूगल का Gemini और Perplexity भी सही जवाब नहीं दे पाए। Perplexity ने भी Suddenly फिल्म का अनुमान लगाया, शायद इसलिए क्योंकि इसके लेखक को फिल्म का आइडिया आइजनहावर के पाम स्प्रिंग्स दौरे से आया था, जैसा कि विकिपीडिया में दर्ज है।
xAI का Grok पहले तो गलत था, लेकिन think harder पर क्लिक करने के बाद उसने सही जवाब दिया। लेकिन यह भी इसलिए संभव हुआ क्योंकि पत्रकार ने 2019 में अपने ट्विटर अकाउंट All the Presidents’ Movies पर यह जानकारी पोस्ट की थी।
इसके बाद पत्रकार ने एक आसान सवाल पूछा कि 8 अगस्त 1989 को राष्ट्रपति जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश ने कौन सी फिल्म देखी? टेक्सास स्थित बुश प्रेसिडेंशियल लाइब्रेरी के मुताबिक सही जवाब है, 1942 की क्लासिक Mrs. Miniver। लेकिन ChatGPT, Grok, Copilot और Gemini में से कोई भी सही जवाब नहीं दे सका। Perplexity ने तो कहा कि बुश ने उस दिन Batman देखी थी और स्रोत के तौर पर एक विकिपीडिया पेज लिंक किया, जिसका फिल्म से कोई लेना-देना नहीं था।
AI ज्यादातर इंटरनेट पर पहले से मौजूद जानकारी पर ही निर्भर रहता है। इसका मतलब है कि यह उन डेटा, लेखों, वेबसाइटों और दस्तावेजों से सीखता है जो पहले से ऑनलाइन उपलब्ध हैं। अगर कोई जानकारी व्यापक रूप से इंटरनेट पर मौजूद है, तो AI उसे जल्दी खोजकर आपको प्रस्तुत कर सकता है। लेकिन अगर डेटा दुर्लभ, अप्रकाशित या ऑफलाइन स्रोतों में है तो AI अक्सर या तो जवाब नहीं दे पाता, या फिर अनुमान लगाकर गलत जवाब दे देता है।
यही वजह है कि जब बात अनोखे या गहरे शोध वाले विषयों की आती है, जैसे किसी ऐतिहासिक रिकॉर्ड की जो केवल आर्काइव या निजी संग्रह में हो तो AI की सीमाएं साफ दिखने लगती हैं। AI अपने प्रशिक्षण के बाहर की चीजें खुद से खोज नहीं सकता, इसलिए बिना इंटरनेट पर उपलब्ध सटीक स्रोत के यह विश्वसनीय उत्तर देने में नाकाम रहता है।
AI के आने से नौकरियां खत्म होने के साथ-साथ नई नौकरियों का निर्माण भी होगा, लेकिन इनकी प्रकृति बदल जाएगी। सबसे पहले, ऐसे क्षेत्रों में नौकरियां बढ़ेंगी जहां इंसानों को AI को ट्रेन करना, सुधारना और मॉनिटर करना होगा। इसमें AI ट्रेनर, डेटा लेबलिंग विशेषज्ञ, क्वालिटी एनालिस्ट और AI-जेनेरेटेड कंटेंट की फैक्ट-चेकिंग जैसी भूमिकाएं शामिल हैं। यानी, AI खुद से पूरी तरह सही नहीं होगा, बल्कि इसे संभालने और दिशा देने के लिए इंसानी दखल जरूरी रहेगा।
दूसरा, AI से जुड़े टेक्निकल और क्रिएटिव सेक्टर में नए अवसर पैदा होंगे। उदाहरण के तौर पर, AI डेवलपमेंट, मशीन लर्निंग इंजीनियरिंग, AI-सपोर्टेड डिजाइन, गेम डेवलपमेंट, मेडिकल डायग्नॉस्टिक्स में AI के इस्तेमाल और लीगल रिसर्च जैसे कामों में विशेषज्ञों की मांग बढ़ेगी। यहां AI इंसानों का काम तेज और आसान करेगा, लेकिन आखिरी निर्णय और रणनीति इंसानों को ही तय करनी होगी।
तीसरा, AI के इस्तेमाल से कस्टमर सर्विस, शिक्षा, मार्केटिंग और मीडिया जैसे क्षेत्रों में हाइब्रिड नौकरियां बढ़ेंगी, जहां इंसान और मशीन साथ मिलकर काम करेंगे। उदाहरण के लिए, शिक्षक AI से पढ़ाई के लिए सामग्री तैयार कर सकते हैं, मार्केटिंग टीमें AI से डेटा विश्लेषण करा सकती हैं और पत्रकार AI से रिसर्च में मदद ले सकते हैं। इस तरह, AI सीधा रिप्लेसमेंट नहीं, बल्कि एक सहायक की तरह होगा और जो लोग AI के साथ काम करने की कला सीख लेंगे, उनकी मांग सबसे ज्यादा होगी। इसलिए मौजूदा दौर में AI को अपनाने को लेकर काफी जोर दिया जा रहा है क्योंकि जो नहीं अपनाएंगे वो पीछे रह जाएंगे।
AI में पिछले कुछ सालों में बड़ी टेक कंपनियों ने भारी निवेश किया है और यह निवेश लगातार बढ़ रहा है। माइक्रोसॉफ्ट ने OpenAI में अब तक लगभग 13 अरब डॉलर लगाए हैं, जिससे वह इसका सबसे बड़ा साझेदार बन गया है। इस निवेश के तहत माइक्रोसॉफ्ट को OpenAI के मॉडल अपने प्रोडक्ट्स जैसे Microsoft 365 और Bing सर्च इंजन में इंटीग्रेट करने का मौका मिला है। गूगल ने भी अपने AI प्रोजेक्ट्स, खासकर DeepMind और Google Deep Research में अरबों डॉलर खर्च किए हैं और अपने Gemini मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर डेटा सेंटर्स और रिसर्च पर निवेश किया है।
अमेजन ने AI में निवेश का एक बड़ा कदम तब उठाया जब उसने Anthropic में लगभग 4 अरब डॉलर लगाने का ऐलान किया। इसका मकसद था अपनी क्लाउड सर्विस AWS को AI के क्षेत्र में मजबूत बनाना और ग्राहकों को AI-आधारित समाधान देना। इसी तरह, AI के लिए जरूरी चिप्स बनाने वाली कंपनी एनविडिया ने न सिर्फ अपने रिसर्च में बल्कि AI स्टार्टअप्स को सपोर्ट करने में भी बड़े पैमाने पर पैसा लगाया है, क्योंकि AI मॉडल ट्रेनिंग में इसकी चिप्स की मांग सबसे ज्यादा है।
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फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा ने भी AI रिसर्च पर लगातार निवेश किया है, खासकर अपने LLaMA मॉडल को विकसित करने और AI-आधारित फीचर्स को इंस्टाग्राम और फेसबुक में लाने के लिए। टेस्ला और एलन मस्क की xAI भी अब इस दौड़ में शामिल है, जहां वे अपने चैटबॉट Grok को X के साथ इंटीग्रेट कर रहे हैं। इस तरह, AI निवेश की होड़ अब सिर्फ टेक कंपनियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि ऑटोमोबाइल, हेल्थकेयर और फाइनेंस कंपनियां भी इसमें पैसा लगा रही हैं, ताकि वे आने वाले समय में इस तकनीक के फायदे उठा सकें।
साथ ही, इन टेक कंपनियों के ऊपर यह भी आरोप है कि इन कंपनियों ने AI में इतना पैसा लगा दिया है कि वह अपने निवेश को हर हाल में वापस निकालना चाहते हैं, इसलिए यह भ्रम और डर फैलाया जा रहा है कि AI आने वाले समय में व्यापक तौर पर इंसानों के रिप्लेस कर देगी ताकि लोग डर और फोमो की वजह से AI को अपनाने के लिए मजबूर हो जाएंगे।