Naresh Bhagoria
6 Nov 2025
स्पेन। अगर आप कभी स्पेन की गलियों में गए हों, तो वहां की धुनों में एक अलग गर्माहट और जोश महसूस होता है। इसे फ्लामेंको की आत्मा कहते हैं। इसमें ताल, ताली, कदमों की आवाज और चेहरे के हाव-भाव के जरिए भावनाओं को व्यक्त किया जाता है। फ्लामेंको सिर्फ नृत्य नहीं है, बल्कि यह एक पूरी कहानी कहता है।
फ्लामेंको की शुरुआत स्पेन के दक्षिणी इलाके अंडालूसिया से हुई थी। यहां की मिट्टी, लोग और उनकी भावनाएं मिलकर इस नृत्य को जन्म देती हैं। इसमें नृत्य, गायन और संगीत तीनों साथ चलते हैं। इसे देखने वाला हर शख्स इसे महसूस करता है। जब कोई फ्लामेंको डांसर मंच पर आता है, तो उसके हर कदम, हर घुमाव और हर नजर में एक कहानी छिपी होती है। ये कहानी प्यार, दर्द या कभी-कभी विद्रोह की होती है। यह डांस सिर्फ तय किए हुए मूवमेंट्स नहीं है, बल्कि भावनाओं का ज्वालामुखी है, जो हर ताल के साथ फूटता है।
फ्लामेंको केवल स्पेन की कला नहीं बल्कि इसकी जड़ें भारत तक फैली हुई हैं। 15वीं से 18वीं सदी के बीच जब जिप्सी लोग भारत से यूरोप आए तो वे अपने संगीत और ताल की परंपराएं लेकर गए। जब वे स्पेन पहुंचे तो उनका संगीत वहां की लोकधुनों और अरबिक सुरों के साथ मिला और इसी मेल से फ्लामेंको का जन्म हुआ। इतिहासकार बताते हैं कि 711 ईस्वी में अरब लोग जब स्पेन आए तो उनके संगीत और वाद्ययंत्रों ने अंडालूसिया की संस्कृति को गहराई दी और जिप्सियों की लय और भावनाओं ने इसे और भी खास बना दिया।
फ्लामेंको की आत्मा गायन में है। गायक अपनी आवाज से सीधे दिल को छू जाने वाली भावनाएं जगाता है। गिटार की थाप पूरे नृत्य को लय देती है और नर्तक अपने हाथों आंखों और पैरों से वह सब कहते हैं जो शब्दों में नहीं कहा जा सकता। फ्लामेंको का नृत्य पूरी तरह भावनाओं और ताल का खेल है। इसमें नर्तक अपने पैरों की थाप, हाथों और बांहों की लय और शरीर की चाल से कहानी बयां करता है। पुरुषों का अंदाज ताकत और आत्मविश्वास दिखाता है। उनके कदम ज़मीन पर जोर से पड़ते हैं और ताल की गूंज पूरे मंच में फैलती है। महिलाएं लंबी फ्रिल वाली ड्रेस में कदम उठाती हैं, उनके घूमने और हाथों की हलचल से कपड़े भी लहराते हैं और नृत्य में और खूबसूरती जोड़ते हैं। फ्लामेंको में हर थाप और हर इशारा किसी भावना का प्रतीक होता है। कभी यह प्रेम और उत्साह दिखाता है, तो कभी दुख और तड़प। नर्तक अपनी आंखों और चेहरे के भावों से भी कहानी को जीवंत बनाता है। गिटार और गायन के ताल के साथ उनका हर कदम जैसे संगीत में एक कहानी लिख देता है।

फ्लामेंको शब्द पहली बार 18वीं सदी में इस्तेमाल हुआ। माना जाता है यह अरबी शब्द फेलेह मेंगु से आया है जिसका अर्थ है भटकने वाला इंसान। यह नाम उन जिप्सियों के लिए रखा गया जो हमेशा एक जगह से दूसरी जगह जाते और अपने संगीत से सबको मोहित कर देते। आज फ्लामेंको सिर्फ स्पेन तक सीमित नहीं बल्कि अमेरिका जापान फ्रांस और भारत में भी इसके कलाकार और प्रेमी हैं। यह अब जैज पॉप और फ्यूजन संगीत का हिस्सा बन गया है।
सेविल कोर्डोबा और ग्रेनेडा आज भी फ्लामेंको के मुख्य केंद्र हैं। यहां हर गली में शाम ढलते ही गिटार की धुनें गूंजती हैं और कोई न कोई डांसर अपने जज्बातों को कदमों की थाप में ढालता नजर आता है।
साल 2010 में यूनेस्को ने फ्लामेंको को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया। यह कला उस जुनून का प्रतीक है जो इंसान के भीतर छिपा होता है।