People's Reporter
7 Nov 2025
रायपुर। राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' के 150 वर्ष पूरे होने पर पूरे देश में राष्ट्रीय एकता और गौरव महोत्सव की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दी है। यह गीत न केवल भारत की स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा रहा है, बल्कि राष्ट्र की आत्मा का स्वर भी माना जाता है। इस महोत्सव में देश को वंदे मातरम गीत की ऐतिहासिक यात्रा और इसके आंदोलन से जुड़े अध्यायों से अवगत कराया जाएगा।
छत्तीसगढ़ के लिए यह अवसर इसलिए भी खास है, क्योंकि 1907 में रायपुर के टाउन हॉल में पहली बार वंदे मातरम गीत गाया गया था, जो आज ऐतिहासिक धरोहर बन चुका है।
1907 में जब अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ पूरे देश में आजादी की लहर तेज हो रही थी, तब रायपुर में राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों का एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया गया था। यह सम्मेलन टाउन हॉल (तत्कालीन कलेक्टर परिसर) में हुआ था, जिसमें पंडित रविशंकर शुक्ला ने नेतृत्व किया था। इसी दौरान उपस्थित लोगों ने पहली बार रायपुर की धरती पर वंदे मातरम गीत का सामूहिक गायन किया था। इतिहासकारों के अनुसार, यह प्रसंग छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ था।
1905 में लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन किए जाने के बाद देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध शुरू हो गया। इस विरोध को राष्ट्रवादी क्रांति का नाम दिया गया। इस आंदोलन की लहर आंध्र प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक फैल गई। कृष्णा जिले और बस्तर के आस-पास के क्षेत्रों में लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई।
इतिहासकारों का कहना है कि आंध्र से जुड़ा यह आंदोलन छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र तक पहुंचा, जिससे स्थानीय लोगों में भी स्वतंत्रता की चेतना जागी।
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र बताते हैं कि 1907 में रायपुर के टाउन हॉल में पहली बार वंदे मातरम गीत गाया गया था। उन्होंने बताया कि पंडित रविशंकर शुक्ला के नेतृत्व में सैकड़ों लोग इस आयोजन में शामिल हुए थे। डॉ. मिश्र ने यह भी बताया कि उन्होंने 2008 में राज्यपाल के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि रायपुर के टाउन हॉल का नाम ‘वंदे मातरम भवन’ रखा जाए, क्योंकि यह स्थान राष्ट्रगीत के ऐतिहासिक गायन का साक्षी रहा है।
वंदे मातरम गीत के 150 वर्ष पूरे होने पर छत्तीसगढ़ सरकार पूरे साल विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करेगी। महोत्सव को चार चरणों में बांटा गया है।
इस दौरान सभी जिलों, ग्राम पंचायतों, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यालयों और सामाजिक संगठनों में राष्ट्रगीत के सामूहिक गायन के साथ कार्यक्रम होंगे। स्कूल और कॉलेजों में 'वंदे मातरम्' विषय पर निबंध, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तरी, पोस्टर निर्माण और सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं कराई जाएंगी।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि 'वंदे मातरम्' की 150वीं वर्षगांठ केवल एक स्मरणीय अवसर नहीं, बल्कि राष्ट्र की एकता, आत्मगौरव और मातृभूमि के प्रति समर्पण का जीवंत संदेश है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन नई पीढ़ी को भारत की सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ेगा। उनमें देशभक्ति-कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रीय चेतना की भावना को और गहराई देगा।
मुख्यमंत्री ने कहा, वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का स्वर है, जिसकी गूंज हर नागरिक के हृदय में नई ऊर्जा और गर्व का संचार करती है।
यह संयोग है कि जब छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना का रजत जयंती वर्ष (25 वर्ष) मना रहा है, तब वंदे मातरम गीत के भी 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इतिहास के पन्नों में रायपुर का नाम इस रूप में दर्ज है कि 1907 में इसी धरती पर पहली बार वंदे मातरम गीत गूंजा था, जो आज राष्ट्र की पहचान और गौरव का प्रतीक बन चुका है।