बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में हुए भीषण ट्रेन हादसे में रेलवे प्रशासन की गंभीर लापरवाही उजागर हुई है। जांच में सामने आया है कि जिस मेमू लोकल ट्रेन के चालक (लोको पायलट) विद्यासागर थे। वह अनिवार्य मनोवैज्ञानिक परीक्षा (साइको टेस्ट) में असफल हो चुके थे। नियमों को ताक पर रखकर, अधिकारियों ने जानबूझकर उन्हें यात्री ट्रेन चलाने की अनुमति दे दी। जिसके कारण यह बड़ा हादसा हुआ, जिसमें 11 यात्रियों की मौत हो गई।
बता दें कि, साइको टेस्ट में फेल लोको पायलट विद्यासागर मालगाड़ी से पैसेंजर ट्रेन के लिए पदोन्नत हुए थे। यात्री ट्रेन चलाने से पहले यह साइको टेस्ट पास करना अनिवार्य होता है। जो चालक के मानसिक संतुलन और त्वरित निर्णय क्षमता का आकलन करता है। विद्यासागर 19 जून को इस टेस्ट में फेल हो गए थे। फिर भी उन्हें ट्रेन परिचालन की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इस गंभीर चूक के बाद रेलवे मंडल में खलबली मची हुई है।

4 नवंबर को गेवरारोड के पास मेमू लोकल ट्रेन की टक्कर खड़ी मालगाड़ी से हुई। हादसे की वजह ऑटो सिग्नलिंग खामियां और लोको पायलट विद्यासागर की अयोग्यता को माना जा रहा है। अधिकारियों को उनकी असफलता की जानकारी थी, फिर भी उन्हें ट्रेन चलाने की अनुमति दी गई। इस भीषण टक्कर में 11 लोगों की मौत हुई और लगभग 20 घायल हुए।

हादसे के बाद रेलवे संरक्षा आयुक्त (CRS) बीके मिश्रा ने ट्रेन हादसे की विस्तृत जांच शुरू कर दी है। 6 नवंबर को, CRS ने डीआरएम कार्यालय में एरिया बोर्ड के एससीआर, एआरटी, एआरएमवी इंचार्ज और कंट्रोलर समेत दस से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों से घंटों पूछताछ की। पूछताछ का मुख्य केंद्र राहत और बचाव कार्य रहा, जहां CRS ने विशेष रूप से एआरटी और एआरएमवी इंचार्ज से घटनास्थल पर उनके पहुंचने और कार्य शुरू करने के समय के बारे में कड़े सवाल किए।

हादसे के प्रत्यक्षदर्शी, घायल असिस्टेंट लोको पायलट रश्मि राज और मालगाड़ी के गार्ड शैलेष चंद्र यादव का बयान सबसे महत्वपूर्ण है। अस्पताल में भर्ती होने के कारण अब उनका बयान वहीं दर्ज किया जाएगा। इस बीच, रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं, क्योंकि साइको टेस्ट में फेल व्यक्ति को यात्री ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी दी गई, जो नियमों का सीधा उल्लंघन है।