Aniruddh Singh
7 Nov 2025
Aniruddh Singh
7 Nov 2025
वाशिंगटन। अमेरिका में जुलाई माह में उपभोक्ता खर्च 0.5% बढ़ गया है, जो पिछले चार माह में सबसे तेज वृद्धि है। यह दिखाता है कि घरेलू मांग अभी भी मजबूत बनी हुई है। हालांकि, सेवाओं की महंगाई बढ़ी है, जिससे मूल मुद्रास्फीति, जिसमें खाद्य और ऊर्जा को शामिल नहीं किया जाता, वार्षिक आधार पर 2.9% तक पहुंच गई है। यह पिछले 5 माह में सबसे अधिक स्तर है। रिपोर्ट बताती है कि सेवाओं की कीमतें खासकर वित्तीय क्षेत्र में बढ़ी हैं, जिसका कारण हाल ही में शेयर बाजार में आई तेजी भी है। फिर भी विशेषज्ञों का मानना है कि उपभोक्ता मांग की मजबूती फेडरल रिजर्व को अगले महीने ब्याज दरें घटाने से नहीं रोकेगी। श्रम बाजार के कमजोर संकेतों को देखते हुए फेड से उम्मीद है कि वह दरों में कटौती करेगा। दरअसल, फेड ने 2024 में तीन बार दरें घटाई थीं, लेकिन इसके बाद से अब तक इसे स्थिर रखा है। बाजार की धारणा पहले से ही है कि इस साल दो और कटौतियां होंगी।
रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि आयात पर लगाए गए नए टैरिफ का जुलाई में ज्यादा असर नहीं दिखा, लेकिन अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि साल के दूसकी छमाही में इनसे महंगाई और बढ़ेगी। शुल्क बढ़ने से कंपनियों की लागत बढ़ेगी और कंपनियां लागत घटाने के लिए कर्मचारियों की छंटनी करेंगी और उत्पादों की कीमतें बढ़ाएंगी। इससे उपभोक्ताओं की आय और खर्च करने की क्षमता दोनों प्रभावित होंगी। अभी भी लोग विवेकाधीन खर्च यानी गैर-जरूरी चीजों पर खर्च कम कर रहे हैं और जरूरी चीजों में भी वे चुनाव को महत्व दे रहे हैं। इस बीच, अमेरिका का गुड्स ट्रेड डेफिसिट 22.1% बढ़कर 103.6 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यानी अमेरिका ने आयात पर निर्यात से कहीं अधिक खर्च किया है। यह स्थिति भी आर्थिक दबाव को दिखाती है।
आंकड़े बताते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे स्टैगफ्लेशन की ओर बढ़ रही है। स्टैगफ्लेशन वह स्थिति है जब महंगाई ऊंची रहती है और आर्थिक वृद्धि और रोजगार की स्थिति कमजोर होने लगती है। यह फेडरल रिजर्व के लिए एक कठिन परिस्थिति है, क्योंकि एक ओर उसे महंगाई नियंत्रित करनी है, वहीं दूसरी ओर आर्थिक विकास और रोजगार को बचाए रखना है। कुल मिलाकर, स्थिति यह है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता खर्च अभी अच्छा दिख रहा है, लेकिन सेवाओं की बढ़ती कीमतें, आयात शुल्कों का दबाव और संभावित छंटनियां आने वाले समय में खतरनाक साबित हो सकती हैं। फेडरल रिजर्व पर दरें घटाने का दबाव इसलिए भी बढ़ रहा है, क्योंकि अगर उपभोक्ता खर्च और श्रम बाजार दोनों कमजोर हुए तो आर्थिक मंदी जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई के बावजूद फेड इस साल दो बार दरों में कटौती करेगा, ताकि मांग और रोज़गार को सहारा मिल सके।