Aniruddh Singh
28 Oct 2025
मुंबई। टाटा ट्रस्ट्स इस समय आंतरिक विभाजन और सत्ता संघर्ष के दौर से गुजर रहा है। टाटा ट्रस्ट्स की टाटा समूह की मूल होल्डिंग कंपनी टाटा संस में 51% हिस्सेदारी है। ट्रस्ट के भीतर यह टकराव मेहली मिस्त्री की पुनर्नियुक्ति के मुद्दे को लेकर गहराता जा रहा है। जिनका कार्यकाल आज समाप्त हो रहा है। आज 28 अक्टूबर को होने वाली बैठक में इस मुद्दे पर निर्णायक मतदान होगा, जो न केवल टाटा ट्रस्ट्स की दिशा बदलेगा बल्कि टाटा संस के भविष्य के ढांचे को भी प्रभावित करेगा। वर्तमान में ट्रस्ट दो खेमों में बंट गया है। एक ओर नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह हैं, जो मेहली मिस्त्री के कार्यकाल को आगे बढ़ाने के खिलाफ हैं। दूसरी ओर दारियस खंबाटा, प्रमित झावेरी और जहांगीर एच.सी. जहांगीर हैं, जो उनके पक्ष में हैं।
ट्रस्ट के सीईओ सिद्धार्थ शर्मा ने मेहली मिस्त्री की पुनर्नियुक्ति का प्रस्ताव रखा है, जिससे विवाद और गहरा गया है। मेहली मिस्त्री, रतन टाटा के करीबी और दिवंगत साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई हैं। वे लंबे समय से टाटा ट्रस्ट्स के भीतर प्रभावशाली भूमिका निभाते आए हैं और अब एक ध्रुवीकरण का प्रतीक बन गए हैं। रतन टाटा के बाद ट्रस्ट के चेयरमैन बने नोएल टाटा अपने शांत और पेशेवर नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, वे इस मुद्दे पर स्पष्ट रूप से मिस्त्री के खिलाफ हैं। वीणु श्रीनिवासन और विजय सिंह, दोनों वरिष्ठ औद्योगिक और प्रशासनिक अनुभव वाले ट्रस्टी हैं, जो यह मानते हैं कि मिस्त्री का रवैया ट्रस्ट्स के सामूहिक निर्णय तंत्र को कमजोर कर सकता है।
दूसरी ओर, वरिष्ठ अधिवक्ता दारियस खंबाटा और पूर्व बैंकिंग प्रमुख प्रमित झावेरी जैसे पेशेवर ट्रस्टी मेहली मिस्त्री के समर्थन में हैं। उनका तर्क है कि मिस्त्री, रतन टाटा की मूल दृष्टि के अधिक निकट हैं और ट्रस्ट्स में पारंपरिक मूल्यों की निरंतरता बनाए रख सकते हैं। जहांगीर हीरजी जहांगीर, जिनकी स्वास्थ्य क्षेत्र में गहरी पकड़ हैं, भी इसी विचारधारा के समर्थक हैं। मामले को और जटिल बना दिया मिस्त्री के हालिया कदम ने, जब उन्होंने वेणु श्रीनिवासन की पुनर्नियुक्ति को सशर्त मंजूरी दी। इसने कानूनी बहस छेड़ दी है कि क्या एक ट्रस्टी दूसरे की नियुक्ति पर शर्तें लगा सकता है। इस कदम को कई लोगों ने पावर प्ले के रूप में देखा। इसके बाद से ट्रस्ट के अंदर पारदर्शिता और सामंजस्य पर सवाल उठाए जाने लगे हैं।
इस विवाद का प्रभाव केवल ट्रस्ट के अंदर सीमित नहीं रहेगा। टाटा ट्रस्ट्स की 51% हिस्सेदारी टाटा संस में होने के कारण, यहां लिया गया कोई भी निर्णय सीधे टाटा समूह के बोर्ड, प्रबंधन और भविष्य की उत्तराधिकार योजनाओं पर असर डालेगा। इस निर्णय से यह तय होगा कि क्या ट्रस्ट का नेतृत्व नोएल टाटा की स्थिर और पेशेवर दिशा में आगे बढ़ेगा या फिर रतन टाटा के पुराने विश्वस्तों का प्रभाव फिर से बढ़ेगा। आज की बैठक, लंबे समय से जारी इस अंतःसंघर्ष की निर्णायक मोड़ साबित होगी। यह सिर्फ एक व्यक्ति की पुनर्नियुक्ति का मसला नहीं, बल्कि टाटा की विरासत की दिशा तय करने वाला निर्णायक अवसर है।