Aniruddh Singh
23 Oct 2025
नई दिल्ली। भारतीय शेयर बाजार में हाल के महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की ओर से लगभग 23 अरब डॉलर की बिकवाली देखने को मिली। पहली नजर में यह आंकड़ा चिंताजनक लगता है और यह धारणा बनती है कि विदेशी निवेशक भारत से अपना पैसा निकालकर जा रहे हैं। जब इस आंकड़े को गहराई से समझने का प्रयास किया जाए, तो तस्वीर बिल्कुल अलग ही दिखाई देती है। सितंबर 2024 के अंत तक भारतीय सार्वजनिक शेयरों में विदेशी निवेशकों के कुल निवेश का बाजार मूल्य लगभग 940 अरब डॉलर था। निवेश विशेषज्ञों का मानना है कि इसके मुकाबले 23 अरब डॉलर की बिकवाली लगभग 2.37% ही है, जो बहुत बड़ा हिस्सा नहीं माना जा सकता। बिकवाली का सबसे बड़ा कारण भारत के शेयर बाजार का अन्य उभरते बाजारों की तुलना में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन रहा है। इस वजह से विदेशी निवेशकों ने बाजार से कुछ पूंजी निकाल ली।
निवेश विशेषज्ञों की इस बात को सरल शब्दों में कहें तो भारतीय शेयरों में विदेशी निवेशकों को अच्छा लाभ मिला और उन्होंने मुनाफा बुक करते हुए आंशिक रूप से अपना निवेश निकाल लिया है। यह बाजार की कमजोरी नहीं, बल्कि सामान्य प्राफिट बुकिंग है। यही कारण है कि इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। अगर विदेशी निवेशक इसलिए शेयर बेच रहे होते कि वे भारत से निराश हो गए हैं या उन्हें भारी हानि उठानी पड़ी है, तो स्थिति चिंताजनक होती। लेकिन यहां मामला बिल्कुल अलग है। वे इसलिए अपना हिस्सा बेच रहे हैं, क्योंकि उन्हें अच्छे रिटर्न मिले हैं और यह उन्हें सुरक्षित रूप से पूंजी निकालने का अवसर दे रहा है। हालांकि, इस बिकवाली और अन्य कारणों से बाजार में कुछ गिरावट देखने को मिली है। सितंबर 2024 से जुलाई 2025 के बीच भारतीय शेयर बाजार औसतन रुपए के लिहाज से लगभग 5 फीसदी और डॉलर के हिसाब से लगभग 10 फीसदी नीचे रहा।
इसी कारण एफपीआई के कुल निवेश का बाजार मूल्य भी घटकर लगभग 820 अरब डॉलर पर आ गया। लेकिन यह गिरावट इस कारण नहीं कि विदेशी निवेशक भारत से निराश होकर भाग रहे हैं, बल्कि यह मुख्यत: प्राफिट बुकिंग और बाजार के करेक्शन का असर है। एक और बात महत्वपूर्ण है। विदेशी निवेशकों के पास अभी भी भारतीय शेयर बाजार में 600 अरब डॉलर से अधिक का अनरियलाइज्ड गेन मौजूद है। (अनरियलाइज्ड गेन का मतलब है कि बाजार में निवेश है और उसका मूल्य बढ़ चुका है, लेकिन इसकी बिक्री नहीं हुई, इसलिए इसे बेचा या नकद में नहीं बदला जा सकता। इसका मतलब है कि उनका भारत में निवेश अब भी भारी फायदे में है। हां, यह बात सही है कि वे नए निवेश करने से बच रहे हैं और हाल में नेट आधार पर उन्होंने नई पूंजी नहीं लगाई है।
सबसे दिलचस्प तथ्य जुलाई 2025 में देखने को मिला। आंकड़ों के अनुसार पहली बार ऐसा हुआ कि भारतीय म्यूचुअल फंड्स द्वारा भारतीय शेयरों में किया गया निवेश, विदेशी निवेशकों के कुल निवेश से काफी ज्यादा हो गया। यह भारतीय पूंजी बाजार के लिए ऐतिहासिक मोड़ है, क्योंकि इसका मतलब है कि घरेलू निवेशक अब विदेशी निवेशकों से आगे निकल चुके हैं। कुल मिलाकर विदेशी निवेशकों की मौजूदा बिकवाली उनके भारत से निकलने का संकेत नहीं है, बल्कि इसे प्राफिट बुकिंग के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत अब भी उनके लिए आकर्षक निवेश गंतव्य है। हाल के दिनों का एक प्रमुख बदलाव यह है कि घरेलू निवेशकों की भूमिका काफी मजबूत हो गई है और अब भारतीय म्यूचुअल फंड्स भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों से बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं।