Aniruddh Singh
28 Oct 2025
मुंबई। रतन टाटा के भरोसेमंद और शापूरजी पलोनजी परिवार के उद्योगपति मेहली मिस्त्री को टाटा ट्रस्ट्स से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। ट्रस्ट के तीन प्रमुख सदस्यों चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और ट्रस्टी विजय सिंह ने उनके कार्यकाल के नवीनीकरण को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। जिससे बहुमत के आधार पर मिस्त्री की सदस्यता समाप्त हो गई। इस फैसले ने न केवल ट्रस्ट्स की आंतरिक राजनीति को झकझोर दिया है, बल्कि इसका टाटा संस के प्रशासनिक फ्रेमवर्क पर भी गहरा प्रभाव पड़ने की संभावना है।
मेहली मिस्त्री दो प्रमुख ट्रस्ट्स सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (एसडीटीटी) और सर रतन टाटा ट्रस्ट (एसआरटीटी) के ट्रस्टी हैं, जिनकी मिलकर टाटा संस में 51% हिस्सेदारी हैं। दोनों ट्रस्ट्स का टाटा समूह के 66% शेयरों पर नियंत्रण है। नियमानुसार, मिस्त्री खुद अपने नवीनीकरण पर वोट नहीं दे सकते थे और चूंकि एसडीटीटी में तीन ट्रस्टी उनके खिलाफ थे, निर्णय बहुमत से उनके विरुद्ध चला गया। एसआरटीटी में भी जिमी टाटा आमतौर पर चर्चाओं में भाग नहीं लेते, जिससे वहां भी यह फैसला प्रभावी रूप से बहुमत से पारित माना गया।
यह घटनाक्रम एक ऐतिहासिक संयोग भी बन गया है। अक्टूबर का महीना वही है, जब वर्ष 2016 में मेहली मिस्त्री के चचेरे भाई साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाया गया था। इस बार भी अक्टूबर में ही एक और मिस्त्री टाटा संस्थान से बाहर हो रहे हैं, जो समूह के भीतर चल रहे शक्ति संतुलन के संघर्ष को उजागर करता है। ट्रस्ट्स के सीईओ सिद्धार्थ शर्मा ने पिछले सप्ताह मिस्त्री के कार्यकाल के नवीनीकरण का प्रस्ताव रखा था। इस पर दारियस खंबाटा, प्रमित झावेरी और जहांगीर हीरजी जहांगीर ने इसके पक्ष में सहमति भी दी थी, लेकिन तीन वरिष्ठ ट्रस्टियों के विरोध के चलते सर्वसम्मति नहीं बन सकी और अंततः मिस्त्री की विदाई तय हो गई।
टाटा ट्रस्ट्स में अब तक परंपरा रही है कि सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं। लेकिन रतन टाटा के निधन के बाद यह परंपरा टूटने लगी है। पिछले वर्ष सितंबर में भी ट्रस्ट ने बहुमत के आधार पर पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को टाटा संस के निदेशक पद से हटाने का निर्णय लिया था। यह वही बिंदु था, जिसने ट्रस्ट के भीतर मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया और देशभर में चर्चा छेड़ दी कि भारत की सबसे प्रतिष्ठित चैरिटेबल संस्थाओं में अब एकता की जगह विभाजन बढ़ रहा है। गौरतलब है कि 1932 में बने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के ट्रस्ट डीड में स्पष्ट प्रावधान है कि यदि तीन ट्रस्टी मौजूद हों, तो बहुमत का निर्णय मान्य होगा। इसी आधार पर यह निर्णय कानूनी रूप से वैध माना जा रहा है।
हालांकि रतन टाटा के निधन के कुछ ही दिनों बाद अक्टूबर 2024 में हुई बैठक में यह भी तय किया गया था कि सभी ट्रस्टी अपने कार्यकाल की समाप्ति पर स्वतः पुनर्नियुक्त होंगे और किसी अवधि की सीमा नहीं होगी। लेकिन इस प्रस्ताव में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि यदि मतभेद हो तो निर्णय कैसे होगा। मेहली मिस्त्री, एम. पलोनजी ग्रुप के प्रमोटर हैं, जिनकी कंपनियां औद्योगिक सेवाओं, शिपिंग, कार डीलरशिप और अन्य क्षेत्रों में सक्रिय हैं। टाटा समूह की कई कंपनियां उनकी व्यापारिक साझेदार भी रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि मिस्त्री शापूरजी पलोनजी परिवार से भी जुड़े हैं, जिसकी टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है और सालों से कंपनी को पब्लिक करने की मांग करता आ रहा है। मेहली मिस्त्री की विदाई टाटा ट्रस्ट्स में शक्ति समीकरणों के पुनर्संतुलन का प्रतीक है। एक ऐसा संकेत कि रतन टाटा युग के विश्वस्तों की जगह अब नोएल टाटा के नेतृत्व में नई सोच और दिशा आकार ले रही है।