Shivani Gupta
8 Nov 2025
इस्लामाबाद। पाकिस्तान और सऊदी अरब ने हाल ही में एक ऐतिहासिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत दोनों देशों ने आपसी रक्षा और सामूहिक सुरक्षा का वादा किया है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने खुलासा किया कि, इस समझौते के तहत पाकिस्तान अपने परमाणु हथियार सऊदी अरब के लिए उपलब्ध कराएगा। समझौते की गंभीरता और रणनीतिक महत्व ने क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा विशेषज्ञों के बीच चर्चा तेज कर दी है।
ख्वाजा आसिफ ने स्पष्ट किया कि, यह समझौता आक्रामक उद्देश्य के लिए नहीं, बल्कि दोनों देशों की रक्षा के लिए है। उन्होंने कहा कि अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो इसे दोनों पर हमला माना जाएगा। उन्होंने नाटो के अनुच्छेद 5 का उदाहरण देते हुए कहा कि, यह सामूहिक रक्षा का सिद्धांत है।
जब आसिफ से पूछा गया कि अगर भारत और पाकिस्तान में जंग होती है तो क्या सऊदी अरब इसमें पाकिस्तान की तरफ से शामिल होगा? इस पर ख्वाजा आसिफ ने कहा, "बिल्कुल, इसमें कोई शक की बात नहीं है।''
आसिफ ने दावा किया कि, पाकिस्तान के परमाणु हथियार सऊदी अरब की जरूरत के समय उपयोग के लिए उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा, “हमारे पास युद्ध के लिए प्रशिक्षित सेनाएं हैं और हमारी क्षमताएं इस समझौते के तहत निश्चित रूप से उपलब्ध होंगी।”
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सऊदी अरब ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को आर्थिक मदद भी दी है। दोनों देशों के बीच डिफेंस कॉर्पोरेशन भी विकसित किया जाएगा। इसमें मिसाइल और अन्य सैन्य साधनों के साथ सामूहिक रणनीति शामिल होगी।
विदेश मंत्री इशाक डार ने कहा कि, इस समझौते के बाद अन्य देशों ने भी पाकिस्तान के साथ ऐसे ही रणनीतिक समझौते करने में रुचि दिखाई है। डार ने इसे ऐतिहासिक मील का पत्थर बताया और कहा कि सऊदी अरब ने हमेशा मुश्किल समय में पाकिस्तान का साथ दिया है।
भारत सरकार ने कहा कि, यह समझौता दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद संबंधों को औपचारिक रूप देता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि इस समझौते के क्षेत्रीय और वैश्विक असर का अध्ययन किया जाएगा और भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
पूर्व अमेरिकी राजदूत जलमय खलीलजाद ने कहा कि, यह औपचारिक ‘संधि’ नहीं है, लेकिन इसकी गंभीरता को देखते हुए इसे बड़ी रणनीतिक साझेदारी माना जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सऊदी अरब अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता।
पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ भी इसी तरह का रक्षा समझौता किया था। 1950-1979 के बीच MDAA, SEATO और CENTO जैसे समझौतों के तहत पाकिस्तान को हथियार, प्रशिक्षण और सामूहिक सुरक्षा के साधन दिए गए थे।