Manisha Dhanwani
21 Sep 2025
वाशिंगटन। अमेरिकी प्रशासन ने एच-1बी वीजा के लिए एक नया शुल्क लागू करने की घोषणा की है, जिसने भारत समेत दुनिया भर के पेशेवरों को चिंता में डाल दिया है। एच-1बी वीजा के लिए शुल्क की दर अब 100,000 डॉलर कर दी गई है और यह दर रविवार से प्रभावी हो जाएगी। इस बीच, व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि शुल्क की यह दर केवल नए आवेदकों पर ही लागू होगा। मौजूदा वीजा-धारकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
इसका मतलब यह है कि जिनके पास पहले से एच-1बी वीजा है तो उन्हें अमेरिका से बाहर होने की स्थिति में यह राशि नहीं चुकानी पड़ेगी। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलीन लेविट ने स्पष्ट किया कि यह कोई वार्षिक शुल्क नहीं है, बल्कि केवल एक बार वीजा याचिका के साथ वसूली जाने वाली फीस है। यानी जब कोई नया व्यक्ति एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करेगा, तभी उसे यह 100,000 डॉलर का शुल्क चुकाना होगा।
कैरोलीन लेविट ने बताया कि इससे मौजूदा धारकों या उनके वीजा नवीनीकरण पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह स्पष्टीकरण उस भ्रम को दूर करने के लिए जरूरी था, क्योंकि वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने पहले कहा था कि यह शुल्क वार्षिक भी हो सकता है, हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा था कि इस पर विचार जारी है। लुटनिक की घोषणा से पहले कई बड़ी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को सतर्क कर दिया था। माइक्रोसॉफ्ट, जेपी मॉर्गन और अमेजन जैसी कंपनियों ने ईमेल के जरिए अपने एच-1बी वीजा धारक कर्मचारियों को सलाह दी थी कि वे फिलहाल अमेरिका से बाहर यात्रा करने से बचें। वहीं, गोल्डमैन सैक्स ने भी एक आंतरिक मेमो में अपने कर्मचारियों को अंतरराष्ट्रीय यात्रा को लेकर सावधानी बरतने के लिए कहा था।
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यह आशंका इस वजह से पैदा हुई थी कि कहीं मौजूदा धारकों को भी अमेरिका में वापसी पर शुल्क न देना पड़ जाए। लेकिन व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि ऐसा नहीं होगा और वर्तमान धारक सामान्य रूप से बाहर जाकर लौट सकते हैं। इस नए शुल्क का सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी उद्योग पर पड़ सकता है। भारत से हर साल हजारों इंजीनियर और तकनीकी पेशेवर एच-1बी वीजा के जरिए अमेरिका जाते हैं।
इस भारी-भरकम शुल्क से न केवल व्यक्तिगत आवेदकों बल्कि आईटी कंपनियों पर भी वित्तीय बोझ बढ़ेगा। अब किसी नए कर्मचारी को अमेरिका भेजना कंपनियों के लिए अत्यधिक महंगा हो जाएगा। छोटे और मध्यम स्तर की आईटी कंपनियां इस खर्च को उठाने में कठिनाई महसूस करेंगी, जबकि बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अपनी वीजा रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होंगी।
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बता दें यह कदम ट्रंप प्रशासन की उस नीति का हिस्सा है, जिसके तहत विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता कम कर अमेरिकी नागरिकों के लिए अधिक नौकरियां सुरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि आलोचकों का कहना है कि इससे अमेरिका की टेक इंडस्ट्री को नुकसान होगा, क्योंकि भारत जैसे देशों से आने वाले कुशल पेशेवर वहां की कंपनियों की रीढ़ माने जाते हैं। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन जैसी कंपनियां लंबे समय से एच-1बी वीजा पर निर्भर रही हैं।
इसका एक संकेत यह भी है कि अमेरिका में विदेशी पेशेवरों के लिए माहौल आगे और कठिन हो सकता है। भारतीय छात्रों और पेशेवरों को अब यह सोचना पड़ेगा कि इतनी ऊंची लागत के बाद भी एच-1बी वीजा पाना कितना व्यावहारिक है। इससे भारत और अमेरिका के बीच तकनीकी सहयोग पर भी असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि भारतीय प्रतिभाओं को अमेरिका भेजना अब पहले जितना आसान और सुलभ नहीं रह जाएगा।