Peoples Reporter
26 Oct 2025
सनातन धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का विशेष स्थान है। जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु के चार महीने की लंबी योगनिद्रा (चातुर्मास) से जागने का प्रतीक है।
बता दें कि, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम के लिए चले जाते हैं। इस चार महीने की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। जिसमें सभी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों विशेषकर विवाह पर रोक लग जाती है। देवउठनी एकादशी के दिन श्रीहरि के जागृत होते ही शुभ कार्यों पर लगा यह विराम समाप्त हो जाता है। इसके बाद विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य पुन: आरंभ हो जाते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है जो अत्यंत कल्याणकारी माना जाता है।
पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में एकादशी तिथि दो दिन होने के कारण व्रत की तिथि इस प्रकार है । देव उठनी एकादशी 1 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी और इस एकादशी का पारण समय 2 नवंबर की दोपहर 01:11 से 03:23 बजे तक रहेगा। पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय दोपहर 12:55 का है। वहीं, गौण देवोत्थान एकादशी व्रत 2 नवंबर को है और पारण का समय 3 नवंबर की सुबह 06:34 से 08:46 बजे तक रहेगा।
इस पवित्र दिन पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। घर के आंगन में या पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। उन्हें रोली, चंदन, पीले फूल, फल, केसर, हल्दी, और विशेष रूप से तुलसी दल अर्पित करें। चूंकि भगवान विष्णु को पीला रंग प्रिय है। इसलिए भोग में पीले रंग की मिठाई, पेड़े या बेसन के लड्डू शामिल करें। पूजा के बाद व्रत कथा सुनकर मंत्र जप और आरती कर क्षमा याचना करें।