People's Reporter
18 Oct 2025
प्रवीण श्रीवास्तव
भोपाल। छिंदवाड़ा में जहरीले सिरप से मासूमों की मौत का मामला सामने आने के बाद फूड एंड ड्रग विभाग चार दिन में कोल्ड्रिफ सिरप की जांच कर अपनी पीठ थपथपा रहा है। वहीं, अगर सिरप की जगह यह गड़बड़ी वैक्सीन, एंटीबायोटिक और इंजेक्शन जैसे इंजेक्टेबल ड्रग में होती, तो इसकी जांच तक नहीं हो सकती थी। दरअसल मप्र में जीवन रक्षक इंजेक्टेबल ड्रग्स की जांच की सुविधा नहीं है। इसके लिए सैंपल कोलकाता व दूसरे राज्य भेजे जाते हैं। रिपोर्ट आने में दो से तीन महीने तक लग जाते हैं। करीब 15 साल पहले तक प्रदेश में यह सभी जांच होती थीं, लेकिन अफसरों की लापरवाही के चलते इंजेक्टेबल ड्रग की जांच बंद हो गई।
विभाग के पूर्व एनालिस्ट के मुताबिक सामान्य दवाओं के मुकाबले इंजेक्टेबल ड्रग की जांच मुश्किल होती है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण पायरोजेन टेस्ट है। इसके लिए वैक्सीन या इंजेक्शन का डोज खरगोश को दिया जाता है, अगर इससे उसके शरीर का तापमान बढ़ता है तो इसे पायरोजेन पॉजीटिव माना जाता है। 15 साल पहले तक एफडीए के पास 25 से ज्यादा खरगोश थे,इनके मरने के बाद नए खरगोश नहीं मंगाए, नतीजतन टेस्ट भी बंद हो गया। मप्र में इंजेक्शन में दवा की मात्रा, बाहरी तत्व की मौजूदगी, पैकेजिंग, टूटफूट जैसी जांच की जाती है। जबकि दवा में बैक्टीरिया, फंगल और अन्य कैमिकल रिएक्शन जानलेवा गड़बड़ियां हो सकती हैं। इसके लिए सैंपल कोलकाता स्थित केन्द्र सरकार की सीडीएल लैब भेजे जाते हैं।
स्टरलिटी टेस्ट : दवा में बैक्टीरिया की उपस्थिति को जांच के लिए टेस्ट होता है। इनकी मौजूदगी से सेप्सिस या इंफेक्शन हो सकता है। स्टरलिटी टेस्ट सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट है।
पायरोजेन टेस्ट : कुछ बैक्टीरिया मरने के बाद भी पायरोजेन एलीमेंट छोड़ जाते हैं इससे तेज बुखार आता है। खरगोश पर जांच करते हैं। यह टेस्ट आम गोलियों या सिरप में नहीं होता।
माइक्रोबायोलॉजी टेस्ट : ड्रग में कोई भी गड़बड़ी या इंफेक्शन की जांच के लिए विशेष माइक्रोबायोलॉजी टेस्ट किए जाते हैं। इसके गंभीर संक्रमण हो सकते हैं।
आस्मोलेरिटी टेस्ट : यह मापता है कि तरल पदार्थ में कितने घुले हुए कण हैं, जो इंजेक्शन की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
वे दवाएं होती हैं जिन्हें सिरिंज और सुई का उपयोग करके सीधे शरीर में पहुंचाया जाता है, जो पाचन तंत्र को बायपास करके रक्तप्रवाह या ऊतकों में तेजी से प्रवेश करती हैं। इस विधि का उपयोग अक्सर आपातकालीन स्थितियों में किया जाता है जहां तुरंत असर की आवश्यकता होती है, क्योंकि ये दवाएं मुंह से ली जाने वाली दवाओं की तुलना में जल्दी काम करती हैं। कुछ दवाएं केवल इंजेक्शन के रूप में ही उपलब्ध होती हैं, क्योंकि वे पाचन तंत्र में नहीं घुलती या पेट के एसिड द्वारा विघटित हो जाती हैं।
-इंसुलिन : मधुमेह के मरीजों को
-टीके : टिटनेस, पोलियो, कोविड आदि के पेशेंट्स के लिए
-एंटीबायोटिक इंजेक्शन
-पेन रिलीफ या विटामिन इंजेक्शन
प्रदेश की लैब को अपग्रेड करने के लिए प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया है। इसके तहत ग्वालिर में नई लैब तैयार की जाएगी। वहीं भोपाल, इंदौर और जबलपुर की लैब को अपग्रेड किया जाएगा। यहां सभी दवाओं की जांच की व्यवस्था होगी।
दिनेश श्रीवास्तव, डायरेक्टर हेल्थ, प्रभारी ड्रग कंट्रोलर, मप्र
इंजेक्टेबल ड्रग रक्त के माध्यम से सीधे शरीर में पहुंचते हैं, इनका असर भी तेज होता है। इनके इंफेक्शन भी आम दवा के मुकाबले ज्यादा गंभीर होते हैं। ऐसे में इनकी जांच जरूरी है।
डॉ. एके श्रीवास्तव, फार्माकोलॉजी एक्सपर्ट और पूर्व डीएमई