Naresh Bhagoria
14 Nov 2025
Naresh Bhagoria
13 Nov 2025
प्रीति जैन- सोशल मीडिया के दौर में कविताओं ने फिर से वापसी की है क्योंकि इंस्टाग्राम और फेसबुक पर ऐसे कई पेज और कम्युनिटी बनीं हैं जो कि कविताओं को प्रमोट करती हैं। दो पंक्तियों से लेकर चार पंक्तियों तक के सुंदर टेम्पलेट पर जब कविताएं स्क्रीन पर नजर आती हैं तो फिर रुचि जागने पर कविताएं कहने और लिखने का कुछ लोगों को शौक लग ही जाता है। शहर में इस समय अलग-अलग ग्रुप में लगभग 1500 युवा कवि हैं, जो कि अपनी रचनाएं मिल-बैठकर एक दूसरे को सुनाते हैं और बंद कमरों या हॉल में नहीं, बल्कि पोएट्री वॉक के जरिए खुले आकाश के नीचे, चिड़ियों की चहचहाहट और आंखों व मन को सुकून देने वाली हरियाली के बीच, कभी वन विहार में तो कभी शाहपुरा झील के किनारे।
साल 2017 में हमने छतनारा की शुरुआत की थी, अब हमारे 500 से ज्यादा एक्टिव मेंबर हैं। शौकिया तौर पर कविताएं गढ़ने वाले अब पोएट्री कॉम्पिटिशन में भी जा रहे हैं। सोशल मीडिया भी पोएट्री के दौर को वापस लाने में अहम रहा क्योंकि जब लोगों ने वन लाइनर, टू लाइनर पढ़ना शुरू किया तो उसके संदेश गहरा इंपेक्ट करने लगे। लोगों को समझ आया कि तुरंत असरदार बात कविता में कही जा सकती है। 20 से 40 साल के एज ग्रुप में कविता पढ़ने और सुनाने का ट्रेंड वापस आया है क्योंकि यह तुरंत मनोभावों को प्रकट कर पाती है। हम नामी कवियों को बुलाकर युवा कवियों से उनका इंटरेक्शन भी कराते हैं ताकि वे इसके तकनीकी पक्षों पर भी काम कर सकें। -मोहिनी शर्मा, फाउंडर, छतनारा
अब मैं विचार आने के बाद तुरंत उस पर कविता नहीं लिखती बल्कि अब मैं धैर्य के साथ कविता को रूप देती हूं क्योंकि अब वर्ड पावर मेरे पास है तो कई नए शब्दों को इस्तेमाल कर पाती हूं। भोपाल में युवा कवियों के बीच कविता सुननेसु नाने का माहौल बन गया है। -फौजिया खान, युवा कवयित्री
मेरे ग्रुप के साथी रवि पाटीदार की कविता पर जाने-मानी कवयित्री तेजी ग्रोवर भी अच्छे कमेंट करती हैं। जब 40 से 50 मेंबर एक बार में होते हैं तो चार घंटे तक सभी रुक कर एकदूसरे की कविता सुनते हैं, मुझे लगता है कि दो मिनट रीड वाले जमाने में यह होना बड़ी बात है। -निशांत उपाध्याय, युवा कवि