Aniruddh Singh
11 Sep 2025
Aniruddh Singh
11 Sep 2025
Aniruddh Singh
11 Sep 2025
नई दिल्ली। भारत के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट एडवांस्ड मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) को लेकर प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है। यह विमान अगली पीढ़ी का अत्याधुनिक लड़ाकू विमान होगा, जिसे देश में ही डिजाइन और निर्मित किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) कर रही है, जिसने कुछ महीने पहले विनिर्माण भागीदार के चयन के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआई) जारी किया था। इस आमंत्रण का उद्देश्य भारतीय कंपनियों को जोड़ना है, ताकि वे मिलकर 5 प्रोटोटाइप तैयार करें और आगे चलकर बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सके। लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर विवाद पैदा हो गया है। देश की प्रमुख एयरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने एडीए के पास औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई है। एचएएल का कहना है कि चयन प्रक्रिया में शामिल कुछ वित्तीय मानदंड उसके खिलाफ जाते हैं और निजी कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाते हैं।
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विशेष रूप से रेवेन्यू टू ऑर्डर बुक रेशियो का प्रावधान एचएएल के हित में नहीं जाता है, क्योंकि उसके पास पहले से ही करीब दो लाख करोड़ रुपए का भारी-भरकम ऑर्डर बैकलॉग है। एडीए ने यह शर्त इसलिए रखी थी, ताकि सारा एयरोनॉटिकल काम केवल एक ही सरकारी कंपनी, यानी एचएएल तक सीमित न रहे और देश में निजी क्षेत्र में भी वैकल्पिक क्षमता विकसित हो। मंत्रालय और एडीए का मानना है कि यदि निजी क्षेत्र को मौका नहीं दिया गया तो भविष्य में लड़ाकू विमानों के निर्माण का पूरा बोझ एचएएल पर ही केंद्रित रहेगा, जबकि उसकी जिम्मेदारियों में पहले से ही फाइटर जेट, हेलीकॉप्टर और ट्रेनर विमान जैसे बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं।
निजी कंपनियों की भी अपनी दलीलें हैं। उनका कहना है कि एचएएल को दशकों से सरकारी निवेश और बुनियादी ढांचा मिलता रहा है, जबकि निजी क्षेत्र को सब कुछ नए सिरे से खड़ा करना होगा। तकनीकी योग्यता में भी निजी कंपनियां एचएएल से पीछे हैं, इसलिए जरूरी है कि चयन के मानदंड निष्पक्ष रखे जाएं। इसी कारण सरकार ने यह आश्वासन दिया है कि एएमसीए प्रोटोटाइप के लिए जरूरी बड़े पैमाने का बुनियादी ढांचा एडीए उपलब्ध कराएगा और एचएएल को कोई अनुचित बढ़त नहीं दी जाएगी। सूत्रों ने कहा कि रेवेन्यू टू आर्डर बुक जैसी शर्तें एचएएल को मजबूर कर सकती हैं कि वह निजी कंपनियों के साथ मिलकर इस परियोजना में उतरे।
यह साझेदारी संयुक्त उद्यम या कंसोर्टियम के रूप में हो सकती है, जहां काम का बोझ साझा किया जाए और साथ ही निजी क्षेत्र को भी लड़ाकू विमान निर्माण में विशेषज्ञता हासिल करने का अवसर मिले। इस तरह भारत में एक नया औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र तैयार होगा, जो आने वाले दशकों तक रक्षा विनिर्माण के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। एएमसीए परियोजना भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत अहम है। यह विमान 5वीं पीढ़ी की तकनीक से लैस होगा और देश की वायु शक्ति को नए स्तर तक ले जाएगा।
इसे स्वदेशी स्तर पर विकसित करने से भारत न केवल आयात पर निर्भरता कम करेगा, बल्कि वैश्विक रक्षा उद्योग में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरेगा। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग की मजबूत संरचना बने। कुल मिलाकर, एएमसीए परियोजना के इर्द-गिर्द मची यह खींचतान इस बात का संकेत है कि भारत के रक्षा उद्योग में एक बड़ा बदलाव आ रहा है। जहां एक ओर एचएएल अपनी दशकों की विशेषज्ञता और क्षमता के दम पर परियोजना में केंद्रीय भूमिका चाहता है, वहीं सरकार और एडीए इस मौके का इस्तेमाल निजी क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए करना चाहती है।