बालाघाट के लालबर्रा में बाघों के क्षेत्र में विराजमान हैं गणेशजी, देखभाल करते हैं भालू
जितेंद्र चंद्रवंशी
जबलपुर। घने जंगलों और वन्यजीवों के साम्राज्य के बीच भगवान गणेश का ऐसा अद्भुत मंदिर है, जहां साल में सिर्फ एक बार ही श्रद्धालुओं को दर्शन का अवसर मिलता है। यह प्राचीन गणेश देव मंदिर बालाघाट जिले के सोनेवानी कंजर्वेशन रिजर्व, लालबर्रा के जंगलों में स्थित है। बताया जाता है कि करीब चार दशक पहले जब ग्रामीण प्रतिमा को ट्रैक्टर से ले जाने का प्रयास कर रहे थे, तो ट्रैक्टर दो भागों में बंट गया था, प्रतिमा अपने स्थान से हिली तक नहीं। 14वीं शताब्दी में स्थापित यह प्रतिमा लगभग पांच फीट ऊंची है और मान्यता है कि हर वर्ष इसकी ऊंचाई बढ़ती जा रही है। गणेश उत्सव पर 10 दिनों के लिए मंदिर आमजन के लिए खोला जाता है। इस अवधि में बालाघाट, सिवनी आदि से हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इतिहास और आस्था से जुड़े इस मंदिर की खासियत यह भी है कि जंगल सफारी के दौरान पर्यटक केवल दूर से ही इसकी झलक पा सकते हैं।
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सरपंच अनीस खान ने बनवाया था मंदिर
वन विभाग के अनुसार यह क्षेत्र बाघ, तेंदुए, भालू और बायसन का आवास है, इस कारण सामान्य दिनों में यहां लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित रहती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि जब मंदिर बंद रहता है तो आसपास बड़ी संख्या में भालू डेरा डालते हैं और मानो वे ही मंदिर की निगरानी करते हैं। मंदिर परिसर में भगवान गणेश के साथ शिव, शनि, बड़ देव और पवनसुत हनुमान के मंदिर भी स्थापित हैं। करीब 13 वर्ष पूर्व पांढरवाणी के तत्कालीन सरपंच अनीस खान के प्रयासों से इस प्राचीन स्थल को मंदिर का स्वरूप दिया गया। स्थानीय ग्रामीण शिवप्रसाद उइके बताते हैं कि गणेश चतुर्थी पर जब मंदिर के पट खुलते हैं तो पूरा इलाका मेले जैसा प्रतीत होता है। श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं, लेकिन जंगल का रास्ता और जंगली जानवरों का खतरा देखते हुए लोगों को सतर्क रहना पड़ता है।
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गणेशोत्सव पर मिलता है दर्शन का सौभाग्य
यहां दर्शन का सौभाग्य केवल गणेश उत्सव पर ही मिलता है। इस दौरान भक्तजन बड़ी आस्था से पूजन-अर्चना करते हैं और मानते हैं कि भगवान गणेश सभी विघ्न हर लेते हैं।
-राजेश पांडे, पुजारी