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इंदौर।
लव जिहाद फंडिंग जैसे संगीन आरोपों में जेल में बंद पूर्व पार्षद अनवर कादरी ने जमानत हासिल करने के लिए कोर्ट में ऐसा तर्क उछाला, जिसने पूरे मामले को सियासी रंग देने की कोशिश की। कादरी ने अपने आवेदन में दावा किया कि उस पर भाजपा की सदस्यता लेने का दबाव बनाया गया और जब उसने इनकार किया, तो उसे झूठे मामले में फंसा दिया गया। हालांकि अदालत ने इन दलीलों को पूरी तरह नकारते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी और साफ संकेत दे दिया कि गंभीर अपराधों में राजनीतिक बहाने स्वीकार्य नहीं होंगे।
जमानत आवेदन में कादरी ने खुद को 15–16 वर्षों तक पार्षद रहने वाला जनप्रतिनिधि बताते हुए कहा कि जेल में रहने से उसकी सामाजिक छवि को नुकसान हो रहा है। उसने यह भी आरोप लगाया कि राज्य में भाजपा की सरकार होने के कारण उसे पार्टी में शामिल होने का दबाव झेलना पड़ा। कादरी का कहना था कि जैसे ही उसने भाजपा की सदस्यता लेने से मना किया, वैसे ही उसे इस कथित झूठे केस में फंसा दिया गया और उसका इस मामले से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है।
शासन का कड़ा विरोध, कोर्ट ने नहीं मानी कोई दलील
शासन पक्ष ने कादरी की जमानत अर्जी का सख्ती से विरोध किया और मामले की गंभीरता को रेखांकित किया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपर सत्र न्यायाधीश श्रीमती यतेश शिशौदिया की अदालत ने कादरी की जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत के सामने यह तथ्य रखा गया कि बाणगंगा थाना क्षेत्र में दर्ज प्रकरण में कादरी पर लव जिहाद फंडिंग जैसे गंभीर आरोप हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
पिछले महीने ही छीना गया था पार्षद पद
नगर निगम के वार्ड 58 से पार्षद रहे अनवर कादरी को 5 नवंबर को ही पद से हटाया जा चुका है। संभागायुक्त डॉ. सुदाम खाड़े ने आदेश जारी कर कादरी को आगामी पांच वर्षों तक किसी भी चुनाव में भाग लेने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं, कादरी के खिलाफ एक दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज होने की बात भी सामने आ चुकी है, जिसने उसकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
महापौर की अनुशंसा पर गिरी गाज
कादरी पर गंभीर आरोप उजागर होने के बाद महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने संभागायुक्त को उसे पार्षद पद से हटाने की अनुशंसा भेजी थी। इसके बाद नगर निगम के विशेष सम्मेलन में सर्वसम्मति से कादरी को पद से हटाने का प्रस्ताव पारित किया गया। पूरे घटनाक्रम ने साफ कर दिया कि गंभीर अपराधों के आरोपी के लिए न तो राजनीतिक दांव-पेंच काम आएंगे और न ही कोर्ट में ऐसे तर्कों से राहत मिलने वाली है।