Aniruddh Singh
9 Sep 2025
प्रवीण श्रीवास्तव
भोपाल। वर्क लाइफ बैलेंस यानी काम और घर की जिम्मेदारियों के बीच सामंजस्य बैठाना। लेकिन कॉर्पोरेट कंपनियों में काम करने वाले युवाओं द्वारा बैलेंस नहीं बैठा पाने से डिप्रेशन और एंजायटी जैसी परेशानियों से जूझ रहे हैं। दरअसल, इन सभी के बीच वर्क लाइफ और पर्सनल वेल बीइंग को बैलेंस न रखा जाए तो बर्न आउट तय है। बर्नआउट से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। यह पर्सनल लाइफ के साथ-साथ ऑफिस लाइफ को भी प्रभावित कर सकता है। मनोचिकित्कों के पास हर दिन ऐसे मामले पहुंचते हैं जो वर्क लोड मैनेजमेंट से पीड़ित होते हैं।
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हमीदिया अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ. रुचि सोनी बताती हैं कि कोविड के बाद इस तरह के मामले बढ़े हैं। खासकर वर्क फॉम होम कर रही महिलाओं में यह बहुत कॉमन हो रहा है। आज भी उनके काम को दूसरे स्तर पर माना जाता है। उन्हें आॅफिस के काम के साथ घर की पूरी जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है। ऐसे में वे कई बार डिप्रेशन का शिकार होने लगती हैं।
बदल गया था व्यवहार : मीडिया प्रोफेशनल अंकिता चौधरी के व्यवहार में बदलाव हो रहा था। शांत स्वभाव की अंकिता को अपना ये नेचर खुद बहुत अजीब लगने लगा, तो उन्होंने एक्सपर्ट की मदद ली। वह वर्क और लाइफ में बैलेंस नहीं कर पा रहीं और इसका असर उनके मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा है। एक्सपर्ट ने बताया कि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया तो मामला बिगड़ सकता है।
थकान और चिड़चिड़ापन बढ़ गया : मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले कबीर चौधरी सुबह 9 से रात 11 बजे तक आॅफिस में रहते हैं। घर आने के बाद भी काम करना मजबूरी थी। परिवार और बच्चों को समय ही नहीं दे रहे थे। इससे पत्नी और बच्चे भी नाराज रहने लगे। कबीर को भी सिर दर्द, थकान, चिड़चिड़ापन जैसी परेशानी हो गई। काउंसलर्स ने बताया कि वर्क बैलेंस ना होने से कबीर एंजायटी का शिकार हो गया।
खुद को वर्क हॉलिक मानना भी परेशानी : मनोचिकित्सक डॉ. अवंतिका वर्मा बताती हैं कि कई बार इन पस्थितियों के लिए खुद वर्कर ही जिम्मेदार होते हैं। वे खुद को वर्क हॉलिक मान लेते हैं। यानि उन्हें यह भ्रम हो जाता है कि उनसे बेहतर कोई नहीं कर सकता। ऐसे में वह अपनी क्षमता से ज्यादा काम ले लेते हैं। लेकिन बाद में यह बर्नआउट का कारण बनता है।
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वर्क लाइफ बैलेंस बहुत जरूरी है। मेरे पास कई केस आते हैं, जिनकी शिकायत होती है कि उनका स्वभाव बदल गया। मेरा सुझाव है कि कई बार बॉस को न करना भी आना चाहिए, लेकिन सही तरीके से उन्हें अपनी परेशानी बताएं और परिवार व दफ्तर में अपनी उपयोगिता को खुद समझें और साथियों को भी समझाएं।
-क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, जेपी अस्पताल