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धर्म डेस्क। सनातन धर्म में सूर्य देव को जल अर्पित करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। लोग रोजाना सूर्य को जल चढ़ाते हैं, लेकिन नियमों की सही जानकारी न होने के कारण उन्हें पूरा फल नहीं मिल पाता। सही विधि से जल अर्पण करने पर जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और बुरे दिन खत्म होकर अच्छे दिन की शुरुआत होती है।
समय: सुबह सूर्योदय के बाद और सुबह 9 बजे से पहले ही जल अर्पण करना चाहिए। इस समय सूर्य की किरणें शुद्ध और लाभकारी होती हैं।
लोटा: हमेशा तांबे के लोटे से ही जल अर्पण करें, क्योंकि तांबा सूर्य की ऊर्जा को सीधे शरीर तक पहुंचाता है।
सामग्री: जल में अक्षत, रोली और लाल फूल जरूर डालें।
दिशा: अर्घ्य देते समय मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए और ‘ॐ सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करना चाहिए।
जहां जल गिरता है, वहां से थोड़ा जल लेकर माथे पर लगाएं। इससे नेगेटिविटी दूर होती है और जल का स्पर्श: ऊर्जा बढ़ती है।
सूर्य को जल देने से शरीर और मन में तीन खास प्रभाव जागृत होते हैं।
1. सप्तधातु: शरीर की सात धातुएं संतुलित होती हैं, जिससे रोगों से मुक्ति मिलती है।
2. पिंगला नाड़ी: आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है
3. तप्त ताम्र प्रभाव: नकारात्मक ऊर्जा दूर होकर सकारात्मक शक्ति का संचार होता है।