Naresh Bhagoria
5 Nov 2025
हिंदू धर्म में सुहागन महिलाओं द्वारा अनेक तीज-त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं, जिनमें कजरी तीज से लेकर हरतालिका तीज तक का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस साल यह तीज शनिवार, 8 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी। इसे हर साल अघ्न मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को आयोजित किया जाता है और यह सौभाग्य सुंदरी व्रत के नाम से विख्यात है। यह व्रत देवों के देव, भगवान शिव और पार्वती माता की पूजा से जुड़ा हुआ है। इस दिन विवाहित और अविवाहित महिलाएं अपने जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली और सौभाग्य की कामना करते हुए विधिपूर्वक व्रत करती हैं। आइए जानें इस पावन व्रत की पूजा विधि, महत्व और सही तिथि, ताकि हम इस शुभ अवसर का पूर्ण लाभ उठा सकें।
सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत मार्गशीर्ष माह; अगहन माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। साल 2025 में यह व्रत शनिवार, 8 नवंबर को पड़ रहा है। यह व्रत विवाहित और अविवाहित दोनों महिलाओं द्वारा सुख, समृद्धि और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से किया जाता है।
सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस दिन सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए। इसके बाद घर के उत्तर-पूर्व कोने में लाल कपड़े पर शिव और पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। देवी पार्वती को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं, फल, फूल, धूप और दीप अर्पित करना शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान कथा का पाठ करें और भक्ति भाव से आरती करें। ऐसा विश्वास है कि इस विधि से व्रत करने पर भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद जल्दी प्राप्त होता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार, सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव के अपमान के कारण अग्नि में स्वयं को समर्पित कर दिया। जाते समय उन्होंने कहा कि अगले जन्म में वह शिव की अर्धांगिनी बनेंगी। उनका अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ और कठोर तपस्या और उपवास के माध्यम से उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत इसी भावना को समर्पित है और इसे करने से जीवनसाथी की प्राप्ति और वैवाहिक सुख की कामना पूरी होती है।
सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाता है और सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान देता है। यह व्रत संतान सुख की कामना, विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने और कुंडली के मांगलिक दोष से मुक्ति पाने में भी लाभकारी माना जाता है। इस व्रत के माध्यम से इच्छित जीवनसाथी प्राप्त करने और शाश्वत वैवाहिक सुख की प्राप्ति की परंपरा आज भी जारी है।