Aniruddh Singh
19 Oct 2025
वाशिंगटन डीसी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलिना जॉर्जीवा ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका और चीन दुर्लभ खनिजों के व्यापार को लेकर किसी न किसी समझौते पर पहुंचेंगे, ताकि इन महत्वपूर्ण तत्वों की आपूर्ति में कोई बाधा न आए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इन धातुओं की आपूर्ति रुकती है, तो इसका वैश्विक आर्थिक विकास पर गंभीर भौतिक प्रभाव पड़ेगा। जॉर्जीवा ने यह टिप्पणी वाशिंगटन में आयोजित आईएमएफ और विश्व बैंक की वार्षिक बैठक के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में की। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में दुनिया पहले से ही धीमी आर्थिक वृद्धि, बढ़ती अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनावों से जूझ रही है, और यदि अमेरिका-चीन के बीच दुर्लभ खनिजों को लेकर टकराव बढ़ा, तो यह स्थिति और खराब हो जाएगी।
दुर्लभ खनिज वे तत्व हैं जो आधुनिक तकनीक के लिए बेहद अहम हैं जैसे इलेक्ट्रिक वाहन, स्मार्टफोन, कंप्यूटर चिप, रक्षा उपकरण और सोलर पैनल। इनकी वैश्विक आपूर्ति में चीन का बड़ा हिस्सा है, जबकि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश इन पर अत्यधिक निर्भर हैं। हाल के महीनों में अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापार तनाव और तकनीकी प्रतिबंधों के कारण यह आशंका बढ़ी है कि चीन इन खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकता है। आईएमएफ प्रमुख ने कहा कि यदि इन संसाधनों की आपूर्ति बाधित होती है, तो विश्व उत्पादन लागत बढ़ेगी, महंगाई में वृद्धि होगी, और नवाचार आधारित उद्योगों जैसे सेमीकंडक्टर, नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों का विकास धीमा पड़ सकता है। इससे न केवल उद्योगों को बल्कि वैश्विक उपभोक्ताओं को भी नुकसान होगा।
उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय पहले से ही कमजोर है और उसे गति देने की जरूरत है। लेकिन इसके बजाय, भू-राजनीतिक अनिश्चितता और व्यापारिक तनाव एक “काले बादल” की तरह पूरी दुनिया पर मंडरा रहे हैं। जॉर्जीवा के शब्दों में अब अनिश्चितता ही नई सामान्य स्थिति बन गई है। विश्लेषकों का मानना है कि आईएमएफ की यह चिंता वाजिब है, क्योंकि दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति पर किसी भी तरह का अवरोध ऊर्जा परिवर्तन की वैश्विक योजनाओं को बाधित कर सकता है। दुनिया के अधिकांश देश कोयले और तेल से हटकर हरित ऊर्जा की दिशा में बढ़ रहे हैं, जिसके लिए इन धातुओं की मांग तेजी से बढ़ रही है।
अमेरिका पहले से ही चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहा है, जबकि चीन का कहना है कि वह अपनी प्राकृतिक संपत्तियों की रक्षा करना चाहता है। अगर यह प्रतिस्पर्धा आर्थिक हथियारों में बदल जाती है, तो इसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ सकता है। आईएमएफ प्रमुख ने दोनों देशों से संवाद बनाए रखने और वैश्विक सहयोग की भावना को मजबूत करने की अपील की। उनका कहना था कि अगर अमेरिका और चीन आर्थिक प्रतिस्पर्धा को बातचीत और साझेदारी के जरिए सुलझाते हैं, तो इससे न केवल उनकी अर्थव्यवस्थाओं को बल्कि पूरी दुनिया को लाभ होगा। इस प्रकार, जॉर्जीवा का संदेश स्पष्ट है यदि वैश्विक आर्थिक स्थिरता बनाए रखनी है, तो दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला को राजनीति से दूर रखना होगा, क्योंकि इसका सीधा असर दुनिया की वृद्धि दर और विकास योजनाओं पर पड़ता है।