Manisha Dhanwani
26 Oct 2025
Manisha Dhanwani
26 Oct 2025
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में चर्चा छेड़ दी है। उन्होंने शनिवार को कोच्चि में आयोजित ‘शांति, सद्भाव और राष्ट्रीय विकास’ विषय पर कार्यक्रम में कहा कि किसी भी नेता की पहली वफादारी देश के प्रति होनी चाहिए, न कि पार्टी के प्रति।
उन्होंने इस मौके पर यह भी कहा कि जब देश की सुरक्षा और भविष्य का सवाल हो, तब राजनीतिक दलों को एक-दूसरे से मिलकर काम करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
थरूर ने अपनी बात रखते हुए कहा, “हम जब कहते हैं कि देशहित में दूसरे दलों से मिलकर काम करना चाहिए, तो कुछ लोग उसे पार्टी से गद्दारी मान लेते हैं। यही सबसे बड़ी दिक्कत है। राजनीति में प्रतिस्पर्धा चलती रहती है, लेकिन जब संकट हो, तो सभी दलों को एकजुट होना चाहिए।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि राजनीतिक पार्टियां सिर्फ एक माध्यम हैं, देश को बेहतर बनाने के रास्ते हैं। अगर देश ही नहीं बचेगा, तो पार्टियों का क्या औचित्य रह जाएगा?
थरूर ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की तारीफ की थी और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर सरकार और सेना के कदमों का समर्थन किया था। इस बयान के बाद कांग्रेस के भीतर नाराजगी देखी गई थी और पार्टी के कुछ नेताओं ने थरूर के रुख पर सवाल भी खड़े किए थे।
लेकिन थरूर अपने रुख पर कायम हैं। उन्होंने कहा, “मैं कांग्रेस के सिद्धांतों से जुड़ा हूं, लेकिन जब बात देश के हित की हो, तो हमें संकीर्ण सोच छोड़ देनी चाहिए। मैं मानता हूं कि जरूरी समय में सभी दलों को साथ आना चाहिए। पार्टी में कुछ लोग इसे गलत मानते हैं, पर मुझे यह सही लगता है।”
थरूर इससे पहले भी पार्टी लाइन से हटकर बयान देते रहे हैं। 10 जुलाई को मलयालम अखबार ‘दीपिका’ में लिखे एक लेख में उन्होंने 1975 में लगी इमरजेंसी को भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय बताया था। उन्होंने लिखा था कि नसबंदी जैसे फैसले मनमाने और क्रूर थे और अनुशासन के नाम पर की गई कार्रवाईयों को उचित नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि इमरजेंसी से सबक लेना जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।