Mithilesh Yadav
20 Nov 2025
जैसे ही सर्दियां दस्तक देती हैं, कई लोग अपनी उंगलियों में अचानक होने वाले बदलाव से घबरा जाते हैं- उंगलियां सफेद पड़ना, फिर नीली दिखाई देना, झनझनाहट, दर्द और सूजन… शुरुआत में यह एक आम ठंड का असर लग सकता है, लेकिन जब यह बार-बार हो, तो मामला गंभीर हो सकता है। यही वह स्थिति है जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करने वाले रेनाड्स सिंड्रोम की ओर इशारा करती है।
यह सिर्फ एक सर्दी से जुड़ा लक्षण नहीं, बल्कि शरीर के ब्लड सर्कुलेशन से जुड़ी एक जटिल समस्या है, जो खासकर 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में ज्यादा दिखाई देती है। आइए फीचर स्टोरी की तरह समझते हैं कि यह स्थिति क्यों होती है और कैसे इससे बचा जा सकता है।
रेनाड्स सिंड्रोम में हाथ और पैरों की उंगलियों की छोटी-छोटी धमनियां ठंड लगते ही अचानक सिकुड़ जाती हैं। इस सिकुड़न के कारण उंगलियों तक खून और ऑक्सीजन की सप्लाई कम हो जाती है, जिसके चलते-
यह एक तरह का वैस्कुलर स्पैम है जिसमें ब्लड फ्लो रुकने के कारण उंगलियों में सुन्नपन, जलन, चुभन जैसा दर्द और बाद में सूजन तक हो सकती है। अगर यह प्रक्रिया बार-बार होती रहे, तो उंगलियों में घाव भी बन सकते हैं।
यह समस्या सिर्फ ठंड से ही नहीं, अचानक तनाव के दौरान भी ट्रिगर हो सकती है। कई लोगों में 60–70°F (15–21°C) जैसी सामान्य ठंड में भी इसके लक्षण दिखने लगते हैं।
रेनाड्स सिंड्रोम का खतरा उन लोगों में ज्यादा होता है जिनकी रोजमर्रा की गतिविधियां हाथों को अत्यधिक तापमान परिवर्तन या कंपन के संपर्क में लाती हैं। इनमें शामिल हैं-
डॉक्टरों के अनुसार, सर्दियों में ओपीडी में आने वाले लगभग 60% मरीज ऐसे होते हैं जिन्हें उंगलियों के नीले पड़ने की समस्या रहती है। लापरवाही बढ़ने पर उंगलियां काली भी पड़ सकती हैं, और गंभीर मामलों में ऊतक नष्ट होने जैसे खतरे तक पैदा हो जाते हैं।
यह समस्या नियंत्रण में रखी जा सकती है, बस सही आदतें अपनाने की जरूरत है-
रेनाड्स का शुरुआती इलाज दवाओं से किया जा सकता है। कुछ मामलों में मरीजों की मदद बायोफीडबैक तकनीक से भी की जाती है, जिसमें हाथों का तापमान नियंत्रित करना सिखाया जाता है। गंभीर अवस्था में सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ सकती है।