Naresh Bhagoria
9 Nov 2025
Aakash Waghmare
9 Nov 2025
बेंगलुरु। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल पूरे होने के मौके पर मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया, जिसने चर्चा का नया दौर शुरू कर दिया। आरएसएस में सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम और ईसाई भी शामिल हो सकते हैं। बशर्ते वे अपने धर्म के नाम पर अलगाव छोड़कर भारत माता के पुत्र के रूप में आएं। हम यह नहीं पूछते कि कौन क्या है, हम सब भारत माता के पुत्र हैं। यही संघ की कार्यशैली है।
भागवत ने कहा कि, संघ की शाखाओं में मुस्लिम, ईसाई और हिंदू सभी आ सकते हैं। शाखा में आने वाले किसी व्यक्ति का धर्म, जाति या संप्रदाय संघ कभी नहीं पूछा जाता। सभी को केवल इस रूप में स्वीकार किया जाता है कि वे भारत माता के पुत्र हैं। उन्होंने आगे कहा, अलग-अलग संप्रदायों के लोग मुसलमान, ईसाई या कोई अन्य संघ में आ सकते हैं, लेकिन शाखा में आते समय अपनी धार्मिक अलग पहचान को बाहर रखना होगा। शाखा में सभी भारतीय और हिंदू समाज के सदस्य के रूप में आते हैं। संघ इसी तरह काम करता है।
कर्नाटक के बेंगलुरु में '100 इयर्स ऑफ संघ जर्नी: न्यू होराइजन्स' कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि, संघ की सोच पूरी तरह समावेशी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि, संघ किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करता न ही किसी पार्टी का अनुयायी है। संघ की कोई पार्टी नहीं है, सभी पार्टियां संघ की नजर में भारतीय दल हैं।
भागवत ने कहा, संघ का मकसद सिर्फ राष्ट्रनीति का समर्थन करना है, राजनीति का नहीं। हम देश को एक दिशा देना चाहते हैं। जो उस दिशा में काम करेगा, हम उसका समर्थन करेंगे।
कांग्रेस नेताओं द्वारा उठाए गए संघ के रजिस्ट्रेशन और फंडिंग पर सवालों का जवाब देते हुए भागवत ने कहा कि, संघ की स्थापना 1925 में हुई थी। उस समय ब्रिटिश सरकार के पास पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं थी। आजादी के बाद भी संघ का पंजीकरण अनिवार्य नहीं था।
भागवत ने स्पष्ट किया कि, संघ का उद्देश्य केवल भारतीय समाज और संस्कृति को मजबूत करना है और संघ किसी भी राजनीतिक दल के अधीन नहीं है।
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भागवत ने पहले यह भी कहा था कि, संघ भगवा झंडे को गुरु मानता है, लेकिन तिरंगे का सम्मान करता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि, संघ में यह किसी धर्म, जाति या पंथ का सवाल नहीं है।