Peoples Reporter
31 Oct 2025
उज्जैन। मध्यप्रदेश में उज्जैन जो अपने तीसरे ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के लिए प्रसिद्ध है, अनेक अनोखी परंपराओं का केंद्र है। इन्हीं में से एक है हरि-हर मिलन, जो वैकुंठ चतुर्दशी पर मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु (हरि) और भगवान शिव (हर) का दिव्य संगम होता है। इस दिन, बाबा महाकाल को एक भव्य पालकी में बिठाकर शहर के मध्य में स्थित गोपाल मंदिर तक ले जाया जाता है। यहां महाकाल की प्रतिमा को गोपाल मंदिर में विराजमान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के ठीक सामने स्थापित किया जाता है। यही अलौकिक दृश्य हरि-हर मिलन कहलाता है। जो एकता, भक्ति और सद्भाव का सुंदर संदेश देता है।
हरि‑हर मिलन उज्जैन का एक अनोखा और भव्य उत्सव है, जो शिव और विष्णु के मिलन का प्रतीक है। यह त्योहार केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सृष्टि के संचालन और देवताओं के अद्भुत संबंध का जीवंत प्रदर्शन है। इस अवसर पर बाबा महाकाल अपनी दिव्य पालकी में सवार होकर गोपाल मंदिर पहुँचते हैं और भगवान विष्णु से सृष्टि संचालन का भार सौंपा जाता है।
इस परंपरा के पीछे एक गहरी धार्मिक मान्यता जुड़ी है। कहा जाता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का कार्यभार महादेव को सौंपकर पाताल लोक में विश्राम करते हैं। जब देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैं, तो महादेव उन्हें पुनः सृष्टि संचालन का दायित्व सौंपते हैं। यही घटना हरि‑हर मिलन के रूप में उज्जैन में मनाई जाती है। मान्यता है कि यह मिलन केवल एक प्रतीकात्मक दृश्य नहीं है, बल्कि शिव और विष्णु के एकत्व और सृष्टि के संचालन का चक्र दर्शाता है। महाकाल अपने मूल स्थान श्मशान में लौटने से पहले गोपालजी को भार सौंपते हैं, और यह कार्य वैकुंठ चतुर्दशी के दिन होता है।
इस अवसर पर दोनों देवताओं की प्रतिमाओं को आमने-सामने बिठाया जाता है। मंदिरों के पुजारी आधिकारिक रूप से पूजा-अर्चना करते हैं और आदान-प्रदान की रस्म निभाते हैं। बाबा महाकाल भगवान गोपालजी को तुलसी की माला भेंट करते हैं और गोपालजी उन्हें बिल्व पत्र की माला अर्पित करते हैं। इसके अलावा फल, फूल और अन्य पूजनीय वस्तुएं भी आदान-प्रदान की जाती हैं। यह दृश्य भक्तों के लिए अत्यंत भावपूर्ण और अद्भुत होता है। रस्म पूरी होने के बाद बाबा महाकाल अपनी पालकी में सवार होकर महाकालेश्वर मंदिर लौट जाते हैं। इस अवसर पर मंदिरों की विशेष सजावट और भव्य आरती का आयोजन भी होता है, और उज्जैन के हर कोने से हजारों श्रद्धालु इसे देखने आते हैं।
इस वर्ष वैकुंठ चतुर्दशी 4 नवंबर, मंगलवार को है। इस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पड़ती है। यही दिन बाबा महाकाल गोपालजी से मिलने और सृष्टि संचालन का भार सौंपने के लिए निकलते हैं। यह त्योहार केवल एक मिलन नहीं, बल्कि भगवान शिव और विष्णु की एकता और सृष्टि के संचालन की महत्वपूर्ण कथा को जीवंत करता है। सनातन धर्म में कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी एकादशी से सभी मंगल कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि संचालन का कार्य पुनः अपने हाथों में लेते हैं। उज्जैन में बाबा महाकाल उन्हें औपचारिक रूप से यह दायित्व सौंपते हैं।
माना जाता है कि भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक पाताल लोक में रहते हैं। इस अवधि के दौरान सृष्टि संचालन शिव के हाथ में होता है। वैकुंठ चतुर्दशी की मध्यरात्रि में महाकाल अपनी भव्य सवारी पर गोपाल मंदिर पहुँचते हैं और भगवान विष्णु को सृष्टि-पालन का भार सौंपते हैं। यह आदान-प्रदान बिल्व और तुलसी की माला के माध्यम से होता है।
हरि‑हर मिलन केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि शिव और विष्णु के एकत्व, सृष्टि के संचालन और भक्ति की गहरी समझ का संदेश देता है। यह पर्व यह याद दिलाता है कि सृष्टि का चक्र भगवानों की कृपा और संतुलन से चलता है।