Aniruddh Singh
7 Oct 2025
नई दिल्ली। कर्मचारियों के लिए भविष्य निधि (पीएफ) उनकी नौकरी की सबसे बड़ी सुरक्षा मानी जाती है। हर महीने के वेतन से काटा गया यह अंशदान सेवानिवृत्ति के बाद वित्तीय सहारा देने के लिए होता है। लेकिन हकीकत यह है कि इस पैसे को निकालना या ट्रांसफर करना उतना आसान नहीं जितना लगता है। वर्ष 2023-24 में कर्मचारियों द्वारा किए गए पीएफ दावों में से हर चौथा दावा खारिज कर दिया गया। इसका अर्थ यह हुआ कि लाखों लोग अपने ही पैसे तक पहुंचने में असफल रहे। दावे खारिज होने के कारण कई बार बेहद अजीब और तकनीकी गड़बड़ियों से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई के पार्थ राजगोर का मामला लें। उन्होंने अपने पुराने नियोक्ता से पीएफ ट्रांसफर के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनकी केवाईसी में रिश्ते की स्थिति को लेकर समस्या आ गई। सभी दस्तावेजों में उनकी मां का नाम दर्ज था, लेकिन ईपीएफओ पोर्टल पर तकनीकी त्रुटि के कारण फादर की एंट्री दर्ज हो गई। इस छोटी सी गड़बड़ी ने उनका 1.25 लाख रुपए का दावा अटका दिया। दिल्ली के प्रेम कुमार का मामला और भी पेचीदा है। उनके केवाईसी दस्तावेज़ पूरी तरह सही और आधार से लिंक्ड थे।
पोर्टल पर उनकी स्थिति अप्रूव्ड भी दिख रही थी। इसके बावजूद जब उन्होंने दावा किया तो उसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि उनका आधार-यूएएन लिंक पूरा नहीं है। एक ही पोर्टल पर एक जगह स्थिति अप्रूव्ड और दूसरी जगह अनडेफाइन्ड ’ दिखने से यह साबित होता है कि तकनीकी खामियां कितनी गंभीर हैं। बेंगलुरु के विपिन विजयन को दो अलग-अलग यूएएन नंबरों की वजह से समस्या का सामना करना पड़ा। नियम के अनुसार, एक व्यक्ति का केवल एक यूएएन होना चाहिए, लेकिन सिस्टम में गलती से दो अलग नंबर बन गए। पुराने अकाउंट में पैसा नहीं था, इसलिए दोनों को मर्ज करना संभव नहीं हो रहा। अब आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर बदलने की सलाह दी गई है, लेकिन ऐसा करने पर दोनों अकाउंट पर एक साथ असर पड़ेगा। कुछ मामलों में तो और भी विचित्र स्थितियां सामने आती हैं। जैसे, राघव जैन का मामला। उन्होंने एक कंपनी का ऑफर लेटर स्वीकार नहीं किया, फिर भी गलती से एक महीने की सैलरी उनके खाते में भेज दी गई। अब यह भुगतान उनके पीएफ रिकॉर्ड में ‘ओवरलैपिंग सर्विस’ के रूप में दर्ज हो गया है, जिसे हटाने का कोई तरीका नहीं है। नतीजा यह है कि उनका दावा भी खारिज हो सकता है।
इन उदाहरणों से साफ है कि पीएफ से जुड़े दावे अक्सर कर्मचारियों की गलती से नहीं, बल्कि तकनीकी गड़बड़ियों, पोर्टल की खामियों और सिस्टम की जटिलताओं के कारण अटकते हैं। आम वजहों में अधूरा केवाईसी, आधार-यूएएन लिंक न होना, नाम या जन्मतिथि में असमानता, गलत बैंक डिटेल, या क्लेम फॉर्म भरने में चूक शामिल हैं। हालांकि ज्यादातर समस्याएं शिकायत दर्ज कराने और सुधार करने से हल हो सकती हैं, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि समाधान की कोई गुंजाइश नहीं रहती। तब कर्मचारी मजबूर होकर महीनों-दर-महीनों चक्कर काटते रहते हैं। यह पूरी स्थिति बताती है कि अपने ही पैसों तक पहुंच पाना किसी लॉटरी से कम नहीं है। जब एक चौथाई दावे खारिज हो जाते हैं, तो यह चिंता का विषय है। EPFO को चाहिए कि वह अपने पोर्टल की तकनीकी खामियां दूर करे और सेवा व्यवस्था को सरल बनाए। वहीं, कर्मचारियों के लिए भी जरूरी है कि वे समय-समय पर अपने दस्तावेज़ों की जांच करें, आधार-यूएएन लिंक और बैंक डिटेल को अपडेट रखें। फिलहाल, हकीकत यही है कि पीएफ क्लेम करना आसान नहीं बल्कि एक मुश्किल और लंबी प्रक्रिया है, जहां मेहनत से कमाया हुआ पैसा पाने के लिए भी लंबा इंतजार और संघर्ष करना पड़ता है।