Aakash Waghmare
8 Oct 2025
Mithilesh Yadav
8 Oct 2025
vikrant gupta
8 Oct 2025
प्रीति जैन। जाने-माने कवि और गीतकार आलोक श्रीवास्तव आजकल अपने सोलो शो 'आलोकनामा' और शिव तांडव स्त्रोत के भावानुवाद को लेकर ख़ूब चर्चा में हैं। वे आलोकनामा के साल भर से भी कम समय में दस से अधिक शो कर चुके हैं, जिसे युवा खूब पसंद कर रहे हैं। यूके के बकिंघम और लंदन में भी अक्टूबर में आलोकनामा के शो होने जा रहे हैं। आलोक कहते हैं, इसके बाद से देश के बड़े शैक्षणिक संस्थान मुझे विशेष रूप शो के लिए विज़िटिंग प्रोफ़ेसर की तरह भी बुलाने लगे हैं। आलोक श्रीवास्तव मंगलवार को पीपुल्स समाचार पहुंचे, जहां उन्होंने इंटरव्यू के दौरान बॉलीवुड सेलेब्स के कई रोचक किस्सों से लेकर अपने स्पेशल स्टेज शो आलोकनामा को लेकर कई बातें साझा कीं। जब आलोक श्रीवास्तव से पूछा गया कि ‘आलोकनामा’ भोपाल में कब होगा तो उनका जवाब था कि बहुत जल्द अपने ही शहर में यह शो होगा, क्योंकि मेरी ही पंक्तियां हैं-
मंज़िलें क्या हैं, रास्ता क्या है
हौसला हो तो फ़ासला क्या है...
आलोक श्रीवास्तव कहते हैं, मैंने जावेद अख्तर के साथ यूएस में 15 शो किए, जिसमें वे अपने गीतों की कहानी सुनाते हैं। एक दिन यूं ही मैंने उनसे कहा, क्यों न मैं भी अपनी कविताओं की कहानी सुनाऊं, क्योंकि कवि सम्मेलनों में कविता के अलावा सब हो रहा है। मोटी-मोटी फ़ीस लेकर कविता के नाम पर राजनैतिक टिप्पणियां हो रही हैं। व्हाट्सऐप के सतही चुटकुलों को कविता बनाकर सस्ता हास्य परोसा जा रहा है। सबसे दुःखद तो यह है कि महिलाओं तक पर स्तरहीन टिप्पणियां हो रही हैं। यह सोलो शो आलोकनामा अपने पैशन को पेशा बनाने के लिए मोटिवेट करने की कहानी कहता है। यह शो कविताओं की कहानी तो है ही, उन कहानियों का भी रोचक दस्तावेज़ है जो ज़िंदगी के अनुभवों से निकलती हैं। मैं 30 साल से साहित्य में सक्रिय हूं। मुझे ज़रूरी लगा कि मैं अपने बाद आ रही पीढ़ी को उन संघर्षों की कहानियां सुनाऊं जिनसे आज के कुछ युवा डरते या घबराते हैं। अब लगता है कि लोग आपके संघर्ष की कहानियां भी तभी सुनते हैं, जब आप अपने संघर्ष में तप कर कामयाब हो जाते हैं। एक नाकाम आदमी के संघर्ष की कहानी सुनने का समय किसी के पास नहीं होता।
शिव तांडव स्त्रोत के भावानुवाद के बारे में चर्चा चलने पर उन्होंने बताया पहले मैंने समय एक कविता कही, जो दिख रहा है सामने वो दृश्य मात्र है, लिखी रखी है पटकथा, मनुष्य पात्र है.....। इसे मैंने सोशल मीडिया पर डाला दिया, तो आशुतोष राणा का कॉल आया कि छोटे भाई, तुम्हारी कविता पढ़ता चाहता हूं। फिर उन्होंने मोबाइल पर कविता शूट करके सोशल मीडिया पर डाली तो वो मिलियन में वायरल हो गई। बस फिर क्या था, 15 दिन बाद उनका कॉल आया कि छोटे भाई तुम शिव तांडव स्त्रोत का भावानुवाद कर दो। मैंने कहा, क्या बात कर रहे हैं, उसका मीटर बहुत टफ है, वे उस कविता के बारे में बात करते हुए बोले तुमने मीटर पहले ही साध रखा है। मैं जब इस बात को याद करता हूं तो मुझे लगता है कि बौद्धिक व्यक्तियों का साथ हम खुद भी एलिवेट होते हैं, दरअसल, आलोकित होते हैं। फिर एक दिन आशुतोष राणा का कॉल आया कि हो गया भावानुवाद, तो मैंने कहा हो गया, फाइनल टच देना बाकी है। हालांकि तब तक कुछ हुआ नहीं था, लेकिन प्रारब्ध में यह लिखा था और भावानुवाद लोकप्रिय हो गया।
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आलोक कहते हैं, मेरा गीत महाकुंभ है, महाकुंभ है....जिसे गायक कैलाश खेर स्वर दिया जो कि प्रयागराज महाकुंभ की महिमा, आस्था और परंपरा को वर्णित करने वाला एंथम सॉन्ग बना। इसे करोड़ों श्रद्धालुओं ने सुना। अब एक बार फिर सिंहस्थ कुंभ-2028 की आध्यात्मिक भव्यता को सुरों और शब्दों में गीत के माध्यम से पिरोया है। इस बार भी इसे गायक कैलाश खेर ने अपनी आवाज में स्वरबद्ध किया है।
फिल्म वोडका डायरीज का मेरा लिखा गीत सखी रे पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां...उस्ताद राशिद खान और रेखा भारद्वाज ने गाया। मैंने जावेद अख्तर और गुलजार के साथ कई शोज में स्टेज शेयर किया। शुभा मुद्गल, कविता कृष्णमूर्ति, कैलाश खेर, पंकज उधास, जगजीत सिंह जैसे नामी गायकों ने मेरे गीतों को आवाज दी। एक किस्सा याद आता है, साल 1994 में, 22-23 साल की उम्र में जब अपना लिखा हुआ जगजीत सिंह को सुनाने पहुंचा तो उन्होंने मुझे लगभग भगा लिया था लेकिन मैं रोता हुआ उनके पास वापस गया कि मैं जानना चाहता हूं कि और क्या बेहतर करना चाहिए, तो उन्होंने एक घंटा मुझे बैठाकर गजल का डिसिप्लिन समझाया। किस्मत देखिए 1997 में उन्होंने मेरी लिखी हुई गजलें गाईं।