नई दिल्ली। लोकसभा में बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह ने एक साथ तीन महत्वपूर्ण बिल पेश किए। इन बिलों के जरिये प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री के खिलाफ अगर 5 साल या उससे ज्यादा सजा वाले अपराध में केस दर्ज हो और वे लगातार 30 दिन तक हिरासत में रहें, तो 31वें दिन उन्हें अपने पद से हटना होगा। यह नियम केंद्र से लेकर राज्य तक सभी मंत्रियों पर लागू होगा। हालांकि सदन में हंगामे के चलते विधेयकों को सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया है।
कौन से तीन बिल पेश किए गए?
- गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (संशोधन) बिल 2025 – केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के खिलाफ गिरफ्तारी की स्थिति में हटाने का प्रावधान।
- 130वां संविधान संशोधन बिल 2025 – प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के खिलाफ गिरफ्तारी और हिरासत की स्थिति में हटाने का प्रावधान।
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025 – जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के खिलाफ गिरफ्तारी की स्थिति में हटाने का प्रावधान।
मौजूदा प्रावधान और नई व्यवस्था
- अभी तक प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री के जेल जाने पर इस्तीफे का कोई कानूनी प्रावधान नहीं था।
- नए कानून में यह साफ किया गया है कि यदि कोई मंत्री 5 साल या उससे अधिक सजा वाले अपराध में गिरफ्तार होकर 30 दिन तक हिरासत में रहता है, तो उसे 31वें दिन पद छोड़ना होगा।
किन अनुच्छेदों में संशोधन?
- अनुच्छेद 75 – प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रिपरिषद की नियुक्ति।
- अनुच्छेद 164 – मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति।
- अनुच्छेद 239AA – दिल्ली के मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद।
संसद में विपक्ष का विरोध
लोकसभा में इन बिलों पर जमकर हंगामा हुआ। विपक्षी दलों ने बिलों की प्रतियां फाड़कर गृह मंत्री की ओर फेंकीं, जिसके बाद सदन की कार्यवाही दोपहर 3 बजे तक स्थगित करनी पड़ी। कांग्रेस और AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बिल का विरोध किया और कहा कि इससे जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकार कमजोर होंगे। सपा सांसदों ने बिलों को संविधान विरोधी और न्याय विरोधी करार दिया। अमित शाह ने जोर देकर कहा कि ये बिल पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए लाए गए हैं।
क्यों पड़ी इस बिल की जरूरत?
राजनीति में हाल ही के दो उदाहरण इस बिल के महत्व को रेखांकित करते हैं:
- अरविंद केजरीवाल – दिल्ली के CM रहते हुए शराब घोटाले में 156 दिन तक जेल में रहे, लेकिन इस्तीफा नहीं दिया।
- सेंथिल बालाजी – तमिलनाडु के मंत्री 8 महीने जेल में रहने के बावजूद पद पर बने रहे। उन्हें सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद इस्तीफा देना पड़ा।