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नई दिल्ली। देश के हर कोने में गाया जाने वाला गीत ‘वंदे मातरम्’ आज 150 साल का हो गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस गीत ने सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम को नहीं जगाया, बल्कि लाखों भारतीयों के हृदय में एक ऊर्जा, एक संकल्प और मातृभूमि के प्रति प्यार भर दिया? इस खास अवसर पर दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में स्मरण समारोह आयोजित किया गया। जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक डाक टिकट और सिक्का जारी किया, इसके साथ ही एक नई वेबसाइट भी लॉन्च की।
प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम में कहा कि, वंदे मातरम् मां भारती की आराधना है। यह गीत भारत की आजादी का उद्घोष था और हर युग में प्रासंगिक है। वंदे मातरम् एक शब्द, एक मंत्र, एक ऊर्जा और एक संकल्प है। यह हमारे इतिहास और भविष्य दोनों को जोड़ता है।
रवींद्रनाथ टैगोर का दृष्टिकोण: आनंदमठ सिर्फ एक उपन्यास नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत का सपना है।
गीत का इतिहास: 1875 में बंकिम चंद्र ने बंगदर्शन में इसे प्रकाशित किया। धीरे-धीरे यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया।
शहीदों को श्रद्धांजलि: जिन शहीदों ने फांसी और कोड़ों के बावजूद वंदे मातरम् का नारा लगाया, उन्हें नमन।
यह समारोह 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक पूरे देश में चलेगा। दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में मुख्य कार्यक्रम के अलावा, सुबह करीब 10 बजे देशभर के सार्वजनिक स्थानों पर सामूहिक गायन हुआ। पीएम ने जनता के साथ वंदे मातरम् गाया।
गीत की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को की थी। इसे पहली बार उनकी पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित किया गया और उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया। रवींद्रनाथ टैगोर ने इसका संगीत तैयार किया। 1896 में यह गीत कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया। 14 अगस्त 1947 को संविधान सभा की पहली बैठक ‘वंदे मातरम्’ के साथ शुरू हुई।
1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में वंदे मातरम् जनता की आवाज बन गया। स्कूलों में बच्चों को गीत गाने पर जुर्माना लगाया गया, लेकिन वे रुक नहीं सके। 1909 में मदनलाल ढींगरा के आखिरी शब्द भी वंदे मातरम् थे। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत घोषित किया।
मूल गीत (उदाहरण): सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्, शस्यश्यामलाम मातरम्। वन्दे मातरम्।
भावार्थ (अरबिंद घोष का अनुवाद): हे मां! तेरी धरती जल और फलों से भरी हुई है। तेरी रातें चांदनी से नहाई हुई हैं। तू अपार शक्ति वाली है, संकट को पार करने वाली है, और हमारे हृदय में ज्ञान, धर्म और भक्ति का स्रोत है। हम तुझे प्रणाम करते हैं।
जन्म: 27 जून 1838, नैहाटी, बंगाल
निधन: 8 अप्रैल 1894, कोलकाता
पेशा: लेखक, कवि, उपन्यासकार, पत्रकार
प्रमुख रचनाएं: आनंदमठ, दुर्गेश नंदिनी, कपाल कुंडला, विष वृक्ष, देवी चौधरानी