Shivani Gupta
13 Oct 2025
Aniruddh Singh
13 Oct 2025
नई दिल्ली। भारत में लंबे समय से आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खाद्य फसलों पर प्रतिबंध लागू है। अब ऐसा लग रहा है कि जीएम फसलों पर भारत का सख्त रुख अगले दिनों में नरम पड़ सकता है। अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं और घरेलू स्तर पर खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने की जरूरतों ने भारत को इस दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में लंबित जीएम सरसों (रेपसीड) पर फैसला आने वाला है, जो भविष्य में भारत की कृषि नीति का रुख तय कर सकता है। अमेरिका के साथ व्यापार वार्ताओं में भारत की झिझक का एक बड़ा कारण यह रहा है कि वह अमेरिकी कृषि उत्पादों खासकर जीएम मक्का और सोयाबीन को आयात करने से हिचकता रहा है। लेकिन हाल के महीनों में भारत ने संकेत दिए हैं कि वह जीएम मक्का के आयात पर कुछ शर्तों के साथ प्रतिबंध में ढील दे सकता है। यह बदलाव भारतीय कृषि और व्यापार दोनों के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है।
अब तक भारत ने जीएम फसलों को लगभग पूरी तरह से प्रतिबंधित रखा है। केवल कपास की एक किस्म बीटी कॉटन को ही बीस साल पहले अनुमति मिली थी। इसके बाद किसी भी फसल को इस श्रेणी में मंजूरी नहीं दी गई। किसान संगठनों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और ग्रामीण संगठनों ने लगातार यह तर्क दिया है कि जीएम फसलें प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ सकती हैं, और बड़ी कंपनियों को किसानों पर निर्भरता बढ़ाने का अवसर देती हैं। फिर भी, आर्थिक दृष्टि से स्थिति बदल रही है। भारत अपनी खाद्य तेल जरूरतों का आधे से अधिक हिस्सा आयात करता है। देश में तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए नई तकनीकों की जरूरत महसूस की जा रही है। जीएम सरसों को अधिक उपज देने और कीटों से बचाव में सक्षम बताया गया है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस पर हरी झंडी दिखाता है, तो यह अन्य जीएम फसलों के लिए भी रास्ता खोल सकता है।
कई वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि देश में जीएम सरसों को मंजूरी दी जाए, ताकि उत्पादकता बढ़ सके और तेल आयात पर निर्भरता घटे। वहीं किसानों के कुछ संगठन इस कदम का विरोध कर रहे हैं। भारतीय किसान संघ जैसे संगठन, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं, इसे कृषि पर कॉरपोरेट कब्जे की दिशा में कदम मानते हैं। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में कहा कि भारत अपने किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा और प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करेगा। यह बयान दर्शाता है कि सरकार अभी भी राजनीतिक रूप से सावधान है। किसानों की नाराजगी सरकार के लिए संवेदनशील विषय रही है, खासकर 2020-21 के कृषि कानून विरोधी आंदोलन के बाद।
हालांकि, बदलाव के समर्थक यह तर्क दे रहे हैं कि जब दुनिया की अधिकांश बड़ी कृषि अर्थव्यवस्थाएं जीएम फसलों से लाभ उठा रही हैं, तब भारत को पीछे नहीं रहना चाहिए। उनका कहना है कि बीटी कपास के अनुभव से यह सिद्ध हो चुका है कि सही नियमन के तहत जीएम तकनीक सुरक्षित और लाभकारी हो सकती है। अंततः भारत के सामने एक कठिन संतुलन का सवाल है-क्या वह कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक अपनाकर उत्पादकता बढ़ाने का जोखिम ले या परंपरागत रुख बनाए रखकर किसानों की आशंकाओं को प्राथमिकता दे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस दिशा में निर्णायक साबित हो सकता है, और साथ ही यह भी तय करेगा कि अमेरिका के साथ भारत की व्यापार वार्ताएं किस दिशा में आगे बढ़ेंगी।