Aniruddh Singh
4 Dec 2025
नई दिल्ली। पूर्व आरबीआई गवर्नर और ख्यात अर्थशास्त्री रघुराम राजन का मानना है कि भारत को अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ का जवाब प्रतिशोध से नहीं बल्कि अपनी निर्यात नीति में विविधता लाकर देना चाहिए। उन्होंने कहा भारत को अपना व्यापार किसी एक देश पर निर्भर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से हम दूसरों की मनमर्जियों के शिकार बन जाते हैं। उन्होंने कहा अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर लगाया गया 50% आयात शुल्क दुखद और चिंताजनक है।
इसने भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों को गहरी चोट पहुंचाई है। राजन ने कहा इस कदम से सबसे ज्यादा नुकसान छोटे निर्यातकों और मजदूरों को होगा। उनकी आजीविका खतरे में पड़ जाएगी और यह वह परिस्थिति है जो नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन अब जबकि यह हो चुका है, भारत के लिए यह एक चेतावनी की तरह है कि हमें अपने व्यापार को विविध बाजारों की ओर मोड़ना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि अब हमें अमेरिका पर से निर्भरता घटाकर यूरोप, अफ्रीका और पूर्वी एशिया जैसे क्षेत्रों की ओर ध्यान देना चाहिए।
रघुराम राजन के अनुसार, पहला कदम है निर्यात बाजारों में विविधता लाना। भारत का निर्यात आज भी बड़ी मात्रा में अमेरिका पर केंद्रित है। अगर हम यूरोप, जापान, आसियान, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में अपना दायरा बढ़ाएं तो अमेरिकी बाजार पर निर्भरता घटेगी और झटकों को झेलने की क्षमता बढ़ेगी। दूसरा कदम है वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में गहराई से शामिल होना। रघुराम राजन का कहना है कि वियतनाम जैसे देश व्यापार के लिहाज से अधिक खुले और एकीकृत हैं जबकि भारत अभी बहुत पीछे है।
हमें अपने लॉजिस्टिक्स, शुल्क ढांचे और अनुपालन प्रणाली में सुधार करना होगा ताकि भारतीय उद्योग वैश्विक वैल्यू चेन का अपरिहार्य हिस्सा बन सके। इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि भारत को कच्चे माल और प्राथमिक वस्तुओं के निर्यात से आगे बढ़कर मूल्यवर्धित उत्पादों पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए, झींगा या कच्चे कपास के बजाय प्रोसेस्ड फूड, टेक्निकल टेक्सटाइल्स और स्पेशियलिटी केमिकल्स का निर्यात बढ़ाना होगा। इससे भारत को उच्च आय और प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त दोनों मिलेगी।
रघुराम राजन ने कहा प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए भारत को बुनियादी ढांचे पर बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा। तेज मंजूरी प्रणाली, बेहतर बंदरगाह और उत्पादकता सुधार से ही हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बन पाएंगे। उनका मानना है कि जल्दबाजी या आक्रामक प्रतिक्रिया की बजाय रणनीतिक धैर्य अपनाना चाहिए। भारत को इस चुनौती को अवसर में बदलना होगा और दीर्घकालिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। दिल्ली की मौजूदा नीति भी इसी दिशा में है।
भारत ने साफ कर दिया है कि किसी भी अमेरिकी व्यापार समझौते में उसकी रेड लाइन्स का सम्मान होना चाहिए। कृषि, डेयरी और डेटा संप्रभुता जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भारत समझौता नहीं करेगा। साथ ही, भारत यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर काम कर रहा है ताकि वस्त्र, इंजीनियरिंग और आईटी सेवाओं के लिए नया बाज़ार खोला जा सके। मध्य-पूर्व के लिए भारत ने पहले ही यूएई के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता किया है। इसके अलावा जापान और आसियान देशों के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहन पुर्जों की सप्लाई चेन पर भी बातचीत जारी है।